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अल्लाह की दया (2 का भाग 2)

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विवरण: अल्लाह की दया के संकेतों का अगला भाग और दया और क्षमा के बीच के संबंध पर चर्चा।

द्वारा Aisha Stacey (© 2012 IslamReligion.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 23 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,500 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य:

·आस्तिकों और पूरी सृष्टि के प्रति अल्लाह की दया की विशालता को समझना।

·दया और क्षमा के बीच के संबंध को समझना।

अरबी शब्द:

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·वली - एक अरबी शब्द जिसका अर्थ है सहायक, समर्थक, रक्षक।

अल्लाह की दया के और संकेत

·बारिश

जबकि बारिश कभी-कभी ईश्वर की सजा की याद दिलाता है, यह एक सच्चा आशीर्वाद और सर्वोच्च दया है। जैसा कि हम जानते हैं कि बारिश के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं होगा। सारी शक्ति और ताकत सिर्फ ईश्वर की है और वह हमें क़ुरआन में इसकी याद दिलाता है। ईश्वर सर्वशक्तिमान है, जिसका वर्षा और उसकी उदारता पर पूर्ण नियंत्रण है।

“और हमने आकाश से उचित मात्रा में पानी बरसाया…” (क़ुरआन 23:18)

“तथा वही है, जो वर्षा करता है इसके पश्चात् कि लोग निराश हो जायें तथा फैला देता है अपनी दया और वही संरक्षक, सराहनीय है।” (क़ुरआन 42:28)

·स्वर्ग में अनन्त जीवन।

यह अल्लाह की दया ही होगी जो आस्तिको को न्याय के दिन स्वर्ग में भेजगी। सिर्फ अपने कर्मों के कारण कोई भी स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेगा। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने अपने साथियों को यह कहते हुए समझाया कि, "किसी के भी कर्म उसे स्वर्ग मे नही ले जायेंगे।" साथियों ने कहा, "अल्लाह के दूत, आप भी नहीं?" पैगंबर ने कहा, "नहीं, मैं भी नहीं, जब तक कि अल्लाह मुझ पर दया न करे।[1] हालांकि यह एक व्यक्ति के अच्छे कर्म ही हैं जो अल्लाह की दया को आकर्षित करते हैं।

दया और इसमें जो कुछ भी शामिल है वह इस्लाम में एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवधारणा है क्योंकि इससे उदारता, सम्मान, सहिष्णुता और क्षमा उत्पन्न होती है; वे सभी गुण जो एक मुसलमान को इस जीवन में विकसित करना चाहिए। इस वजह से इस्लाम करुणा, सहानुभूति, क्षमा और प्रेम के गुणों को विकसित करने पर बहुत जोर देता है। क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत दोनों इन आदर्शों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अल्लाह उन मुसलमानों को आशीर्वाद देता है जो दूसरों के प्रति दयालु होते हैं और कठोर या क्रूर व्यवहार को नापसंद करते हैं। इसलिए पैगंबर मुहम्मद को अक्सर विश्वासियों पर भगवान की दया का आह्वान करते हुए सुना जा सकता था।

दया और क्षमा

अल्लाह की दया को कभी कम नही समझना चाहिए और दया और क्षमा के गुण पूरे क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक परंपराओं (सुन्नतों) में एक साथ सबंधित हैं। अल्लाह हमें उससे क्षमा मांगने के लिए कहता है और पैगंबर मोहम्मद ने हमें याद दिलाया कि जब हम ईश्वर से क्षमा मांगते हैं तो ईश्वर क्षमा कर देता है। रात के आखिरी हिस्से में जब सब जगह अंधेरा छा जाता है, तब ईश्वर सबसे निचले आसमान पर आता है और अपने दासों से पूछता है। "है कोई मुझसे प्रार्थना करने वाला ताकि मैं उसका जवाब दूं? है कोई मुझसे कुछ मांगने वाला जिसे मै दे दूं? है कोई मुझसे क्षमा मांगने वाला जिसे मै क्षमा कर दूं?[2]

“आप कह दें मेरे उन भक्तों से, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किये हैं कि तुम निराश न हो अल्लाह की दया से। वास्तव में, अल्लाह क्षमा कर देता है सब पापों को। निश्चय वह अति क्षमी, दयावान् है। तथा झुक जाओ अपने पालनहार की ओर और आज्ञाकारी हो जाओ उसके, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ जाये, फिर तुम्हारी सहायता न की जाये।” (क़ुरआन 39: 53 – 54)

अल्लाह ने मानवजाति को पाप करने और गलतियां करने की प्रवृत्ति के साथ बनाया, हालांकि जब कोई व्यक्ति पश्चाताप करता है तो वह अल्लाह की दया और क्षमा के दिव्य गुणों को देखने और अनुभव करने में सक्षम होता है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "यदि तुम पाप नही करते, तो अल्लाह तुम्हारा अस्तित्व मिटा देता और तुम्हारी जगह उन को पैदा करता जो पाप करते और फिर बाद मे अल्लाह से क्षमा मांगते।[3] गलती करना, गलती का एहसास होना, और दया की आशा करते हुए अल्लाह से क्षमा मांगना, आध्यात्मिक विकास है जो अल्लाह के प्रति व्यक्ति के प्यार को बढ़ाता है। अल्लाह उनसे प्यार करता है जो लगातार अल्लाह से क्षमा मांगते हैं।

हालांकि अल्लाह चाहता है कि सभी मनुष्य उससे क्षमा मांगे, और हालांकि उसकी दया विशाल और सर्वव्यापी है, यह पाप करने की अनुमति नही है। किसी व्यक्ति को अल्लाह की दया को महसूस करने और अल्लाह से अपराधों की क्षमा के लिए, पश्चाताप की शर्तों को पूरा करना चाहिए[4]। तब और सिर्फ तभी अल्लाह की दया होगी।

अल्लाह की दया तब होती है जब अल्लाह पापी के सभी पाप को सिर्फ एक पाप के रूप में गिनता है। और अल्लाह की दया और अधिक होती है जब अल्लाह अच्छे व्यक्ति को उसके अच्छे कामों का दस गुना इनाम देता है और फिर अल्लाह उसके इनाम को दस गुना से भी अधिक बढ़ा सकता है। "अल्लाह ने मनुष्य के ऊपर नियुक्त दूतों को आदेश दिया कि अच्छे और बुरे कर्म लिखे जाएं, और फिर उन्होंने बताया कि कैसे लिखना है। अगर कोई अच्छा काम करने की सोचता है और वह नहीं करता है, तो अल्लाह उसके लिए एक अच्छा काम लिख देगा। और अगर वह अच्छा काम करने की सोचता है और वास्तव में करता भी है, तो अल्लाह उसके काम का इनाम दस से सात सौ गुना और इससे भी कई गुना अधिक लिखेगा। और अगर कोई बुरा काम करने की सोचता है, लेकिन करता नही है, तो अल्लाह उसके लिए एक अच्छा काम लिख देगा। और अगर वह बुरा काम करने की सोचता है और वास्तव में करता भी है, तो अल्लाह उसका एक बुरा काम लिख देगा।”[5] इसके अलावा, अल्लाह प्रत्येक अच्छे काम के बदले पापों को मिटा देता है। "...वास्तव में, सदाचार दुराचारों को दूर कर देते हैं..." (क़ुरआन 11:114)



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

[2] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम, मलिक, अत-तिर्मिज़ी, अबू दाऊद

[3] सहीह मुस्लिम

[4] पहला, पाप करने पर दुखी हो; दूसरा, पाप को तुरंत छोड़ दो और तीसरा दोबारा पाप न करने की शपथ लो। यदि पाप में किसी के अधिकार का उल्लंघन शामिल है, तो उस व्यक्ति के अधिकार को पूरा करना चाहिए।

[5] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

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