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पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)

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विवरण: इस दूसरे पाठ मे पवित्र शहर मदीना और यरुशलम के बारे मे बताया गया है और ये मुसलमानों के दिलों में एक विशेष स्थान क्यों रखते हैं।

द्वारा Aisha Stacey (© 2015 IslamReligion.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 23 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,978 (दैनिक औसत: 4)


उद्देश्य

·दूसरे और तीसरे सबसे पवित्र शहर, मदीना और जेरुसलम के महत्व को समझना।

अरबी शब्द

·मस्जिद - प्रार्थना स्थल का अरबी शब्द।

·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।

·क़िबला - जिस दिशा की और रुख कर के औपचारिक प्रार्थना (नमाज) करी जाती है।

·काबा - मक्का शहर में स्थित घन के आकार की एक संरचना। यह एक केंद्र बिंदु है जिसकी ओर सभी मुसलमान प्रार्थना करते समय अपना रुख करते हैं।

मदीना (जारी है)

Sacred-Cities-part-2.jpgइस्लाम का दूसरा सबसे पवित्र शहर मदीना है। यह सऊदी अरब के पश्चिमी क्षेत्र में हेजाज़ के नाम से जाना जाने वाला क्षेत्र है। मदीना शहर का अरबी शब्द है और इसे "शहर" के रूप में जाना जाता है जिसका अर्थ है कि यह पैगंबर मुहम्मद का शहर है। इसे कभी-कभी मदीना मुनव्वराह के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है ज्ञान का शहर। मूल रूप से यथ्रिब कहा जाने वाला, मदीना वह शहर है जहां पैगंबर मुहम्मद और नए मुस्लिम समुदाय तब आये थे जब मक्का में जीवन बहुत कठिन हो गया था।

पैगंबर की मूल मस्जिद बिना छत वाली इमारत थी जिसमे धर्मोपदेश के लिए एक ऊंचा मंच था। यह लगभग 30 x 35 मीटर का एक मिट्टी की दीवारों का चौकोर घेरा था जो ताड़ की चट्टी से बना था। इसमें तीन दरवाजे थे और तब से इसकी मूल योजना को दुनिया भर के कई अन्य मस्जिदों के निर्माण में अपनाया गया है।

मस्जिद के दक्षिण में एक छाया वाला क्षेत्र और उत्तर की दिशा मे जेरुसलम की ओर नमाज़ पढ़ने का क्षेत्र भी था। जब क़िबला को मक्का में बदल दिया गया, तो मस्जिद के नमाज़ पढ़ने के क्षेत्र को मक्का की ओर बनाया गया। इस स्थान का उपयोग एक सामुदायिक केंद्र, अदालत और स्कूल के रूप में भी होता था। मुसलमानों की लगातार बढ़ती संख्या को समायोजित करने के लिए केवल सात वर्षों में मस्जिद की जगह दोगुनी कर दी गई थी।

इसी मस्जिद में पैगंबर मुहम्मद का मकबरा है। क्योंकि पैगंबरो को आम तौर पर वहीं दफनाया जाता है जहां वे मरते हैं, पैगंबर मुहम्मद को उनकी पत्नी आयशा के घर में दफनाया गया था। यह मूल रूप से मस्जिद से जुड़ा हुआ था, लेकिन बीच की शताब्दियों में मस्जिद का विस्तार इस हद तक हो गया है कि अल-बकी के रूप में जाना जाने वाला कब्रिस्तान, जो कभी शहर के बाहर था, अब मस्जिद के बाहरी परिसर मे है। पैगंबर मुहम्मद के परिवार के कुछ सदस्यों और कई सहाबा और विद्वानों की शुरुआती पीढ़ियों की कब्रें यहां हैं।

दुनिया भर के मुसलमान प्रकाश और शिक्षा से भरे इस शहर की यात्रा करने के लिए तरसते हैं और इसका सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक कारण यह है कि यहां इसमें कई आशीर्वाद हैं।

"जो व्यक्ति मेरी मस्जिद में लगातार 40 नमाज़ पढ़ता है बिना कोई नमाज़ छोड़े, उसे नर्क की आग और अन्य पीड़ाओं से और पाखंड से भी मुक्ति मिल जाएगी।"[1]

पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "मुझे एक ऐसे शहर में प्रवास करने का आदेश दिया गया था जो अन्य शहरों से बड़ा (विजय) हो जाएगा और इसे यथ्रिब कहा जाता है जो कि मदीना है, और यह (बुरे) व्यक्तियों को वैसे हटा देगा जैसे भट्ठी लोहे की अशुद्धियों को हटा देती है।" और उन्होंने यह भी कहा, "मदीना के प्रवेश द्वारों (या सड़कों) की रखवाली स्वर्गदूत करते हैं, न तो प्लेग और न ही दज्जाल (एंटीक्रिस्ट) यहां आ सकेगा।[2]

मदीना और उसके आस-पास ऐसे स्थान और दर्शनीय स्थल हैं जो इस्लामी इतिहास से ओत-प्रोत हैं। बद्र की लड़ाई का स्थल मदीना से लगभग 20 मील दक्षिण पश्चिम में है, और चार मील उत्तर में उहुद की लड़ाई का स्थल है। साथ ही कुछ ही दूरी पर वह स्थान है जहां खाई की लड़ाई लड़ी गई थी। मस्जिद अल-क्यूबा इस्लाम में निर्मित पहली मस्जिद है, जिसकी नींव खुद पैगंबर मुहम्मद ने रखी थी, यह मदीना मे है, मस्जिद अल-क़िबलतैन भी मदीना में है, वह मस्जिद जहां क़िबला की दिशा बदलने का रहस्योद्घाटन आया था। इस रहस्योद्घाटन से पहले शुरू मे मुसलमान जेरुसलम की ओर मुंह करके प्रार्थना करते थे।

जेरूसलम

जेरूसलम शहर इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल है। इस्लामिक इतिहास के अनुसार, पैगंबर याकूब ने अपने दादा पैगंबर इब्राहिम के मक्का में काबा का निर्माण करने के लगभग 40 साल बाद अल-अक्सा मे एक मस्जिद का निर्माण किया था। बाद में इसे राजा सुलैमान द्वारा फिर से बनाया या विस्तारित किया गया था, इन्हें भी इस्लाम मे पैगंबर माना जाता है।

पवित्र है वह जिसने रात्रि के कुछ क्षण में अपने भक्त को मस्जिदे ह़राम (मक्का) से मस्जिदे अक़्सा तक यात्रा कराई। जिसके चतुर्दिग हमने सम्पन्नता रखी है, ताकि उसे अपनी कुछ निशानियों का दर्शन कराएं। वास्तव में, वह सब कुछ सुनने-जानने वाला है। (क़ुरआन 17:1)

मुसलमान जेरुसलम से बहुत अधिक जुड़े हुए हैं क्योंकि ईश्वर ने क़ुरआन में इसे "पड़ोस जहां हमने आशीर्वाद दिया है" के रूप में संदर्भित किया है। मस्जिद अल-अक्सा नामक एक परिसर जेरुसलम शहर मे स्थित है। अल-अक्सा के अर्थ का अनुवाद सबसे दूर की मस्जिद है। हालांकि, 144, 000 वर्ग मीटर की साइट पर कई मस्जिदें और सीखने के केंद्र हैं, जिनमें जेरूसलम में सबसे अधिक पहचान योग्य इमारत, डोम ऑफ द रॉक शामिल है।

सुनहरा चमकता हुआ गुंबद जेरुसलम के क्षितिज पर है और मुसलमानों और गैर-मुस्लिमो द्वारा समान रूप से पहचाना जा सकता है। रात की यात्रा और स्वर्गारोहण के रूप में जानी जाने वाली एक घटना में, पैगंबर मुहम्मद एक चट्टान से सबसे निचले स्वर्ग पर गए जो अब इस सबसे प्रसिद्ध प्रतीक के अंदर पाया जाता है। उसी यात्रा पर पैगंबर मुहम्मद ने पहले के सभी पैगंबरो को नमाज़ पढ़ाई थी और यह स्थान अल-अक्सा के दूसरी तरफ है। रात की यात्रा और स्वर्गारोहण के बारे में अधिक जानकारी यहां पाई जा सकती है। http://www.islamreligion.com/articles/1511/

जब नमाज़ की दिशा जेरुसलम से मक्का में बदल दी गई तो जेरुसलम का महत्व कम नहीं हुआ; यह परिवर्तन इस्लाम के संदेश की स्थापना का सिर्फ एक और कदम था। मुसलमानों की नज़र में जेरुसलम का महत्त्व तब भी उतना ही था, जितना अब है।

मस्जिद अल-अक्सा में एक बार नमाज़ पढ़ना कहीं और 250 नमाज़ पढ़ने के बराबर है, मदीना में पैगंबर की मस्जिद को छोड़कर जहां एक बार नमाज़ पढ़ना 1,000 नमाज़ों के बराबर है और मक्का की पवित्र मस्जिद को छोड़कर जहां एक बार नमाज़ पढ़ने पर 100,000 नमाज़ों का इनाम मिलता है।[3]



फुटनोट:

[1] इमाम अहमद

[2] सहीह बुखारी

[3] सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम

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