पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 1)
विवरण: पैगंबरी मिलने से पहले और पैगंबरी मिलने के बाद से मुसलमानों के मक्का छोड़ने तक पैगंबर मुहम्मद के जीवन का विवरण देने वाला तीन-भाग का पाठ। भाग 1: इस्लाम से पहले का अरब और पैगंबर मुहम्मद का प्रारंभिक जीवन।
द्वारा Imam Mufti (© 2016 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·इस्लाम से पहले के अरब के बारे मे जानना।
·अज्ञानता के युग के बारे में जानना।
·पैगंबर के जन्म और प्रारंभिक जीवन के बारे में जानना।
·एक युवा व्यक्ति के रूप मे पैगंबर की प्रतिष्ठा के बारे मे जानना।
अरबी शब्द
·काबा - मक्का शहर में स्थित घन के आकार की एक संरचना। यह एक केंद्र बिंदु है जिसकी ओर सभी मुसलमान प्रार्थना करते समय अपना रुख करते हैं।
पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) का जीवन अरब मे शुरू होता है, लेकिन उनकी कहानी उनके जन्म से हजारों साल पहले शुरू होती है। उत्पत्ति की पुस्तक, जिसका यहूदी और ईसाई दोनों सम्मान करते हैं, इब्राहिम और उसके दो बेटों, इस्माइल और इसहाक की कहानी का उल्लेख करती है। ईश्वर ने इब्राहीम की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए उन्हें आज्ञा दी कि वह अरब मे अपनी पत्नी हाजरा और अपने पुत्र इस्माइल को अकेला छोड़ दे। ईश्वर ने वहां उनके लिए पानी का एक स्त्रोत बनाया और वे बंजर रेगिस्तान मे बच गए।
इसके तुरंत बाद, आसपास की कुछ जनजातियों ने इस घाटी में निवास करना शुरू कर दिया, जिसे मक्का के नाम से जाना जाने लगा। इस्माइल अरब की एक जनजाति जुरहुम के साथ बड़ा हुआ और उनकी भाषा सीखी।
बाद में अब्राहम जिन्हें अरबी में इब्राहिम के नाम से जाना जाता है, जब वापस आये तो अल्लाह ने उन्हें और उनके बेटे को पूजा करने के लिए एक छोटी जगह बनाने का निर्देश दिया। यह पहली संरचना थी जो पूरी तरह से अकेले अल्लाह की पूजा के लिए समर्पित थी। पिता और पुत्र ने अरबों को अल्लाह की पूजा करने और अन्य सभी झूठे देवताओं को त्यागने के लिए आमंत्रित किया।
इस्माइल अंततः अपने पिता की तरह एक पैगंबर बन गए और अपने परिवार के साथ मक्का मे ही रहने लगे। इस्माइल के बाद, उनके वंशजों ने अल्लाह की पूजा की और उनकी नैतिक शिक्षाओं का पालन किया। काबा अल्लाह की पूजा का केंद्र बना रहा और वह पर तीर्थयात्रा के लिए पूरे अरब से श्रद्धालु आते थे।
अज्ञानता का युग
समय के साथ चीजें बदलीं और अरब के लोग इस्माइल के सही रास्ते को भूल गए। तीर्थयात्रा पूजा के बजाय सिर्फ एक खाली अनुष्ठान बन गया। चौथी शताब्दी के आसपास, खुजाह नामक जनजाति ने इस्माइल के वंशजों को मक्का से बाहर निकाल दिया और उनके एक प्रमुख ने मूर्ति पूजा की शुरुआत की। कुछ शताब्दियों के भीतर, अरब के चारों ओर मूर्तिपूजा प्रचलित हो गई और अल्लाह के घर को मूर्तिपूजा के घर में बदल दिया गया। ऐसा नहीं है कि वे एक अल्लाह मे विश्वास नहीं करते थे; वो करते थे। हालांकि, वे यह मानने लगे थे कि अल्लाह से सीधे संपर्क नहीं किया जा सकता है और ये मूर्तियां उनके और अल्लाह के बीच मध्यस्थ हैं। इन मूर्तियों को प्रसन्न करने के लिए, वे जानवरों का वध भी करते थे और बलिदान मूर्तियों को समर्पित करते थे। कुछ धार्मिक रीति-रिवाजों के आविष्कार के साथ मूर्तिपूजा एक संगठित धर्म बन गया।
अरब के अन्य लोग भी थे जो अल्लाह पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते थे। कुछ शुद्ध भौतिकवादी थे जो केवल यह मानते थे कि समय अंततः सब कुछ नष्ट कर देता है। अन्य सूर्य, चंद्रमा, या कुछ सितारों और ग्रहों की पूजा करते थे। अधिकांश मूर्ति उपासकों के पास बाद के जीवन की बहुत कम या कोई अवधारणा नहीं थी।
महिलाओं की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसके माता-पिता लड़की होने पर खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर करते थे। कुछ पिता गरीबी के डर से लड़की को जिंदा दफना देते थे। वेश्यावृत्ति आम थी और एक स्वीकृत सामाजिक आदर्श बन गई थी।
बहुत ही कम लोग पढ़-लिख सकते थे, या किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा प्राप्त करते थे। उल्लेख के योग्य एकमात्र विज्ञान कविताएं थी, जिसमे अरब के लोग माहिर थे।
पैगंबर के जन्म से पहले की घटनाएं
5वीं शताब्दी के आसपास, कुसैय इब्न किलाब ने खुज़ाह जनजाति के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया और मक्का पर फिर से नियंत्रण करने में कामयाब रहे। उनके कबीले के सदस्य, जिन्हें कुरैश के नाम से जाना जाता है, पैगंबर इस्माइल के प्रत्यक्ष वंशज थे।
6ठी शताब्दी तक, कुरैश ने अरब के चारों ओर बिखरे हुए कई जनजातियों के बीच सम्मान का स्थान बनाया क्योंकि वे काबा और यहां आने वाले तीर्थयात्रियों की देखभाल करते थे।
कुरैश के कबीले में कई अलग-अलग परिवार या कुल शामिल थे। हाशिम का परिवार अब सबसे प्रमुख लोगों में से था। कबीले के प्रमुख अब्दुल मुत्तलिब मक्का में कुरैश के अनौपचारिक नेता बन गए थे। उनके कई बच्चे थे, लेकिन उनके पसंदीदा में से एक अब्दुल्ला थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता था कि वह अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब्दुल्ला ने ज़ुहरा कबीले की आमिना से शादी की। कुछ महीने बाद, जब उनकी पत्नी गर्भवती थी, तो वो उत्तर मे यथ्रिब जाते समय रास्ते मे बीमार हो गए और उनकी मृत्यु हो गई।
एक अनाथ का पैदा होना
आमिना ने वर्ष 570 में एक बेटे को जन्म दिया। बच्चे के दादा ने उसका नाम मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) रखा, जिसका अर्थ है 'प्रशंसित', जो उस समय अरब में एक दुर्लभ नाम था।
उस समय अरब में यह प्रथा थी कि कुलीन परिवारों के शिशुओं को बदू लोगो के साथ रेगिस्तान मे पाला जाता था। मुहम्मद हलीमा के घर में पले-बढ़े जो उनकी पालने वाली मां थीं और उन्होंने रेगिस्तान के तौर-तरीके सीखे। वह अपनी मां को देखने के लिए हर कुछ महीनों में मक्का जाते थे, और फिर वापस रेगिस्तान में लौट आते थे। कुछ समय बाद जब मुहम्मद केवल छह वर्ष के थे, उनकी मां आमिना बहुत बीमार हो गईं और यात्रा के दौरान उनका निधन हो गया। उनके दादा अब्दुल मुत्तलिब ने उनकी देखभाल की और उन्हें अपने बेटे की तरह माना। हालांकि, जब युवा मुहम्मद केवल आठ वर्ष के थे, तब उनके दादा का भी निधन हो गया। इसके बाद से उनके चाचा अबू तालिब ने उनका पालन-पोषण किया।
अबू तालिब अपने भतीजे से बहुत प्यार करते थे और यहां तक कि जब अबू तालिब व्यापार के लिए सीरिया और अन्य स्थानों की यात्रा करते तो अपने भतीजे को भी साथ ले जाता थे।
एक चरवाहे के रूप में
हालांकि, अबू तालिब अपने पिता की तरह बहुत अमीर नहीं थे, इसलिए मुहम्मद को जीविकोपार्जन और अपने चाचा की मदद करने के लिए काम करना पड़ता था। उन्होंने मक्का के लोगों के लिए भेड़ और बकरियों के झुंड की देखभाल करते हुए एक चरवाहे के रूप में कार्य कर के आजीविका कमाना शुरू किया। एक चरवाहा बहुत ज़िम्मेदारी सीखता है। उसे भेड़ो के एक समूह का देखभाल करना होता है, और साथ ही उन्हें शिकारियों से बचाना होता है।
यह चरवाहे को धैर्य भी सिखाता है और उसे शहर के अत्यधिक शोर से दूर, सोचने और प्रतिबिंबित करने के लिए बहुत समय देता है।
अल्लाह ने अन्य समुदायों में जितने भी पैगंबरो को भेजा उनमे से बहुत को चरवाहे के रूप में जाना जाता था क्योंकि किसी व्यक्ति के व्यवसाय का उसके व्यक्तित्व पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
उनकी प्रतिष्ठा
मुहम्मद उन कुछ लोगों में से एक थे जिन्होंने बहुत कम उम्र से मूर्तियों की पूजा करने से इनकार कर दिया था। वह काबा जाते थे लेकिन सिर्फ अल्लाह की पूजा करने के लिए। उन्होंने मूर्ति के नाम पर बलि किए गए किसी भी मांस को खाने से भी परहेज किया। कुछ वर्षों तक चरवाहा का काम करने के बाद, उन्होंने व्यापार में रुचि ली और एक व्यवसायी बन गए जो लोगों के सामान का, उनके लिए व्यापार करते थे। कुरैश में अधिकांश रईस पेशे से व्यापारी थे। हालांकि, मुहम्मद अपनी ईमानदारी और सच्चाई की वजह से बाकियों से अलग थे। वह जल्दी ही मक्का में अल-अमीन अर्थात 'ईमानदार' के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इसके अलावा वह अपनी उच्च नैतिकता, पवित्र चरित्र और शराब, जुआ, अवैध संबंधों जैसे अन्य दोषों से बचने के लिए भी जाने जाते थे।
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