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धर्म परिवर्तन के बाद परीक्षण और समस्याएं (2 का भाग 2)

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विवरण: पैगंबर और उनके साथियों ने तक़वा और धैर्य के साथ परीक्षणों और समस्याओं का सामना कैसे किया, इस पर एक संक्षिप्त चर्चा।

द्वारा Aisha Stacey (© 2012 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,509 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य:

·अपने धर्मी पूर्वजों का अनुकरण करना सीखना।

अरबी शब्द:

·तक़वा - अल्लाह का खौफ या डर, धर्मपरायणता, ईश्वर-चेतना। यह बताता है कि व्यक्ति जो कुछ भी करता है उसे अल्लाह देख रहा है।

·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।

·शैतान - यह इस्लाम और अरबी भाषा में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है शैतान यानि जो बुराई की पहचान को दर्शाता है।

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

Trials2.jpgइस्लाम के बारे में वास्तव में सुकून देने वाली चीजों में से एक यह जानना है कि सब कुछ अल्लाह की मर्जी से होता है। अल्लाह की इजाज़त और मर्जी के बिना न कोई पत्ता गिरता है, न कोई चिड़िया गाती है, न कोई बच्चा पैदा होता है और न ही कोई इमारत खड़ी होती है। अल्लाह ब्रह्मांड का निर्माता और सभी जीवन का पालनकर्ता है; अच्छा और बुरा (जैसा कि हम समझते हैं), कठिन समय और आराम का समय सब अल्लाह की तरफ से है। यह निश्चित रूप से जानकर सुकून मिलता है कि हमारा अस्तित्व एक सुव्यवस्थित दुनिया का हिस्सा है और जीवन में वही हो रहा है जैसा होना चाहिए; यह एक ऐसी अवधारणा है जिससे स्थिरता और शांति आती है।

“तथा हम अवश्य कुछ भय, भूक तथा धनों और प्राणों तथा खाद्य पदार्थों की कमी से तुम्हारी परीक्षा करेंगे और धैर्यवानों को शुभ समाचार सुना दो।” (क़ुरआन 2:155)

अल्लाह के सभी पैगंबर धर्मी थे, जिनके अंदर तक़वा था, फिर भी उन्हें परीक्षणों और समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने धैर्य और कृतज्ञता के साथ अपनी परीक्षाओं का सामना किया और हम उनके अनुभवों से सीख सकते हैं। उन्हें उनके ही समुदायों ने सताया और परेशान किया। पैगंबर नूह ने अपने समुदाय को हर रोज, साल-दर-साल 950 वर्षों तक अल्लाह की और बुलाया, और उन्होंने हर दिन के ताने और उपहास को तब तक सहन किया जब तक कि वह कर सकते थे और अल्लाह ने नूह और विश्वासियों को न केवल बाढ़ से बचाया, बल्कि लोगों की बुराई से भी बचाया। पैगंबर यूसुफ को उनके भाइयों ने अलग कर दिया, कुएं में फेंक दिया, गुलाम के रूप मे बेच दिया और उन्होंने कई साल जेल में बिताए। नूह की तरह ही उन्होंने कभी भी अल्लाह पर अपने विश्वास को डगमगाने नहीं दिया। उनका तक़वा उनकी ढाल था।

हम मनुष्य अक्सर बीमारी और रोग के रूप में परीक्षणों और समस्याओं से पीड़ित होते हैं, लेकिन ये सब पैगंबर अय्यूब की बीमारी से अधिक नहीं है। सभी नुकसानों, धन, संपत्ति और परिवार के नुकसान के बावजूद वह धैर्यवान बने रहे और अल्लाह पर भरोसा रखा। अंत में अय्यूब से उनका स्वास्थ्य भी ले लिया गया। वह एक चर्म रोग से ग्रसित हो गए, रात-दिन गंभीर दर्द में रहते थे और जो भी उन्हें जानता था सब छोड़ के चले गए, सिवाय उनकी पत्नी जो अल्लाह की दया से अय्यूब के साथ तब भी रही जब वे गरीब थे। अय्यूब ने कभी भी अल्लाह को दोष नहीं दिया, और उनका स्वास्थ्य, धन और परिवार उन्हें वापस कर दिया गया। अय्यूब की कहानी का पूरा विवरण यहां है।[1]

पूर्ण समर्पण के साथ अल्लाह की पूजा करने के लिए धैर्य चाहिए। कुछ दिनों या कुछ हफ्तों के लिए पूजा करना आसान है, लेकिन हमें लगातार पूजा करते रहना चाहिए। रात में प्रार्थना करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है, उपवास के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है, और समस्याओं और परीक्षणों के साथ जीने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि हम अक्सर ऐसा सुनते हैं कि उसके पास "अय्यूब जैसा धैर्य" है। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) खुद बीमारी से पीड़ित थे। उनकी प्यारी पत्नी आयशा ने कहा, "मैंने कभी भी किसी को इतना बीमार नहीं देखा जितना कि अल्लाह के दूत हैं।" एक आस्तिक के लिए, दुख एक आशीर्वाद हो सकता है। एक आस्तिक जानता है कि अल्लाह अपनी दया से उसके कुछ पापों को क्षमा कर देगा यदि वह धैर्य रखे तो। सुन्नत से हमे पता चलता है कि पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "किसी भी मुसलमान को बीमारी या किसी अन्य असुविधा से नुकसान नही होता है, क्योंकि अल्लाह उसके पापों को वैसे ही दूर कर देगा जैसे की एक पेड़ अपने पत्ते गिराता है।[2]

सहाबा में कई ऐसे भी थे जिन्हें मुस्लिम बनने के बाद गंभीर रूप से सताया गया या मार दिया गया। उस्मान के चाचा ने उस्मान को ताड़ के पत्तों की चटाई में लपेटा और उसमे आग लगा दी। जब उम्म मुसाब ने सुना कि उसके बेटे ने इस्लाम धर्म अपना लिया है, तो उसने उसे खिलाने से मना कर दिया और बाद में उसे अपने घर से निकाल दिया। जब बिलाल के मालिक ने उसके इस्लाम में परिवर्तन की खबर सुनी तो उसने बिलाल को बुरी तरह पीटा। कभी-कभी उसके गले में एक रस्सी डाल दी जाती और गली के लड़के उसे मक्का की सड़कों और आसपास की पहाड़ियों से ऊपर और नीचे घसीटते थे। कभी-कभी उसे भूखा रखा जाता था, कभी-कभी उसे बांधकर गर्म रेत पर लिटा दिया जाता और ऊपर भारी पत्थर रख दिया जाता था। बिलाल बच गए और उन्हें मुसलमानों को प्रार्थना के लिए बुलाने वाले पहले व्यक्ति होने का सम्मान मिला; उनकी कहानी भी यहां पढ़ी जा सकती है।[3]

इस्लाम धर्म अपनाने के बाद कभी-कभी जो समस्याएं और कठिनाइयां आती हैं, वे किसी व्यक्ति के चरित्र का पैमाना या अल्लाह की प्रसन्नता या नाराजगी का पैमाना नही होता। इस दुनिया का जीवन परीक्षा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमें इसे धैर्य और कृतज्ञता से सहन करना चाहिए यह जानते हुए कि हमारा वास्तविक जीवन अभी शुरू नहीं हुआ है। बुरे लोगों के साथ अच्छी चीजें क्यों होती हैं, या अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है, इसके पीछे के पुरे ज्ञान को अल्लाह ही जानता है। सामान्य तौर पर, जो कुछ भी हमें अल्लाह की ओर ले जाता है वह अच्छा है और हमें इसे धैर्यपूर्वक सहन करना चाहिए और आभारी होना चाहिए। संकट के समय, लोग अल्लाह के करीब आते हैं क्योंकि अल्लाह सभी आराम और करुणा का स्रोत है। अल्लाह हमें हमेशा रहने वाले जीवन का इनाम देना चाहता है और यदि दर्द और पीड़ा हमें स्वर्ग में ले जा सकती है, तो परीक्षण और समस्या एक आशीर्वाद है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "अगर अल्लाह किसी का भला करना चाहता है, तो वह उसे परीक्षणों मे डालता है।”[4]



फुटनोट:

[1] (http://www.islamreligion.com/articles/2721/)

[2] सहीह अल-बुखारी

[3] (http://www.islamreligion.com/articles/4722/viewall/)

[4] सहीह अल-बुखारी

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