इस्लाम मे परवरिश (2 का भाग 2)
विवरण: परवरिश करने मे सफल होने के लिए हर माता-पिता को बुनियादी कदम जानने की जरूरत है।
द्वारा Abdurrahman Murad (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य:
·यह जानना कि अच्छी परवरिश गर्भावस्था से पहले ही शुरू हो जाती है।
·यह जानना कि अच्छी परवरिश की जिम्मेदारी माता-पिता दोनों की होती है।
·बच्चों को अच्छा नाम देने का महत्व।
अरबी शब्द
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·दुआ - याचना, प्रार्थना, अल्लाह से कुछ मांगना।
अच्छे साथी बनाना
एक मजबूत परिवार बनाने के लिए अच्छे दोस्तों का होना अनिवार्य है। पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा:
“व्यक्ति अपने साथियों से प्रभावित होता है, इसलिए उसे ध्यान रखना चाहिए कि वे किसे साथी बनाता है।”[1]
यह माता-पिता और बच्चों दोनों के लिए सच है। बच्चे अपने आसपास के लोगों से आसानी से प्रभावित हो जाते हैं; अगर माता-पिता अच्छी संगति में रहेंगे, तो यह बच्चों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। पश्चिमी देशों मे तो यह बिल्कुल अनिवार्य है, क्योंकि किसी के मित्र अपनी विचारधारा और व्यवहार में इस्लाम विरोधी हो सकते हैं, इसलिए माता-पिता को यह स्पष्ट होना चाहिए कि अच्छी संगति रखने और बुरी संगति से बचने से उनके बच्चों को यह अंतर करने में मदद मिलेगी कि क्या अनुमेय है और क्या नहीं है। इससे बच्चों को यह समझने में मदद मिलेगी कि हालांकि ऐसे लोग हैं जो शराब पीते हैं या गैरकानूनी काम करते हैं, लेकिन ये अच्छी चीजें नहीं हैं और इसके वैध विकल्प हैं।
माता-पिता को भी अपने बच्चों के लिए अच्छा साथी और दोस्त चुनने में सक्रिय होना चाहिए। अगर बच्चे अपने दोस्तों को घर लाना चाहते हैं, तो इसकी अनुमति देना बुद्धिमानी होगी, ताकि माता-पिता देख सकें कि वे कौन हैं और वे अपने बच्चों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ जाएं।
अल्लाह से दुआ
महान अल्लाह कहता है:
“…मुझीसे प्रार्थना करो, मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करूंगा…” (क़ुरआन 40:60)
एक माता-पिता अपने बच्चों के लिए जो सबसे बड़ा काम कर सकते हैं वो है अपने बच्चों की सफलता के लिए अल्लाह से प्रार्थना करना। माता-पिता की दुआ को अल्लाह स्वीकार करता है। पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा:
“इसमे कोई संदेह नही कि अल्लाह तीन दुआएं स्वीकार करता है, जिसने गलत काम किया है उसकी दुआ, यात्रा करने वाले की दुआ और बच्चों के लिए उनके माता-पिता की दुआ।”[2]
अब तक हमने उन प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की है जो हर माता-पिता को ध्यान रखना चाहिए। अब हम एक ऐसे कदम पर चर्चा करेंगे जो उतना ही महत्वपूर्ण है, लेकिन एक ऐसा कदम है जो एक परिवार बनाने से पहले आता है।
जीवनसाथी चुनना
पश्चिमी देशों मे एक सफल परिवार बनाने की दिशा में यह सबसे महत्वपूर्ण कदम है। पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा:
“अपना परिवार शुरू करने के लिए सबसे अच्छा जीवनसाथी चुनो।”[3]
पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने यह भी समझाया कि 'सर्वश्रेष्ठ' जीवनसाथी कौन है। उन्होंने समझाया कि सबसे अच्छा जीवनसाथी वह है जो धार्मिक रूप से प्रेरित हो और उसका चरित्र अच्छा हो। उन्होंने कहा:
“महिलाओं से शादी चार चीजों के लिए की जा सकती है: उनकी संपत्ति, उनका वंश, उनकी सुंदरता और उनकी धार्मिक प्रतिबद्धता। उसे चुनो जो धार्मिक रूप से प्रतिबद्ध हो, ताकि तुम्हारे हाथ धूल से सने (अर्थात, तुम समृद्ध हो)।”[4]
इन दो कथनों से यह स्पष्ट है कि एक मुसलमान को एक अच्छा जीवनसाथी चुनना चाहिए; यह पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए है।
यदि केवल सांसारिक मामलों के आधार पर चुना जाता है, तो एक अच्छा परिवार बनाने के मामले में वह रिश्ता फलदायी नहीं होगा।
पति और पत्नी दोनों को विवाह के प्रारंभिक चरण से आगे देखना चाहिए कि परिवार के लिए क्या आने वाला है? विवाह के इस बंधन से जो वातावरण बन रहा है, वह एक अच्छे परिवार बनाने में किस प्रकार सहायक होगा? यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसका उत्तर दिया जाना चाहिए। अच्छे से काम करने वाले रिश्ते में, दोनों पति-पत्नी एक अच्छा मुस्लिम परिवार बनाने के लिए मिलकर काम करते हैं। यह एक बड़ी जिम्मेदारी है; ऐसी जिम्मेदारी जिसे पैगंबर ने अपने शब्दों के माध्यम से स्पष्ट रूप से बताया, उन्होंने कहा:
“आप में से हर कोई ज़िम्मेदार है उसके लिए जो आपकी देखरेख मे है। एक राष्ट्र का सरदार उन लोगों के लिए जिम्मेदार होता है जो उसकी देखरेख में होते हैं; एक आदमी अपने परिवार के लिए जिम्मेदार है; एक महिला उन लोगों के लिए जिम्मेदार है जो उसकी देखरेख में हैं।”[5]
कई बुनियादी तौर-तरीके हैं जो दोनों पति-पत्नी के रिश्ते की शुरुआत में महत्वपूर्ण हैं; जब इनका पालन किया जाता है, तो यह उनके लिए उनके जीवन में एक अच्छी शुरुआत सुनिश्चित करता है। पैगंबर ने हमें ऐसा ही एक तरीका बताया है, एक पति को अपनी नई दुल्हन के माथे पर हाथ रखकर कहना चाहिए:
“ऐ अल्लाह, मैं आपसे इसकी अच्छाई मांगता हूं, वो अच्छाई जो उसके स्वभाव मे है और मैं इसकी बुराई से आपकी शरण चाहता हूं, वो बुराई जो इसके स्वभाव मे है।”[6]
कई अन्य बुनियादी तरीके हैं जिन्हें पति और पत्नी दोनों को सीखना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए।
बच्चे
एक अच्छा जीवनसाथी चुनने के महत्वपूर्ण चरण के बाद, पति और पत्नी दोनों को एक अच्छा परिवार बनाने के लिए सुन्नत में वर्णित तरीकों को अपनाना चाहिए।
पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा:
“निश्चय ही तुम न्याय के दिन अपने नाम और अपने बाप-दादा के नाम से बुलाए जाओगे, इसलिए (अपने बच्चों के लिए) अच्छे नाम चुनो।”[7]
आज के समय मे हमारे बच्चों को दिए जाने वाले कुछ नाम अशिष्ट होते हैं! कभी-कभी, माता-पिता अपने बच्चो के लिए गैर-मुस्लिम हस्तियों के नाम चुनते हैं, या वे अपनी संस्कृति में ही ऐसे अजीब 'अद्वितीय' नाम चुनते हैं जिनकी सांस्कृतिक जड़ होती है।
किसी व्यक्ति को दिया गया नाम उसकी परवरिश पर गहरा प्रभाव डालता है; ऐसे नामो से बचना चाहिए जिसका अर्थ बुरा हो या नकारात्मक हो। पैगंबर ने हमें नाम चुनने के बारे में बहुत स्पष्ट निर्देश दिए हैं। पैगंबर ने बताया; उन्होंने एक बार अपने एक साथी ज़ैद अल-खाइल का नाम बदल कर ज़ैद अल-खैर रख दिया; खाइल का अर्थ है घोड़े जबकि खैर का अर्थ है अच्छाई। उन्होंने अपने साथियों को भी सक्रिय रूप से निर्देश दिया कि वे अजीब अर्थ वाले नामों का उपयोग करने से बचें। यह सलाह बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर स्कूलों में बढ़ती हुई बदमाशी को देखते हुए। यदि एक अच्छा नाम चुना जाता है, तो यह बच्चे को उस नकारात्मक कारक से बचाएगा जिसका सामना उन्हें स्कूल मे करना पड सकता है।
पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने हमें यह बताते हुए निर्देशित किया:
“अल्लाह के सबसे प्यारे नाम अब्दुल्ला और अब्दुर-रहमान हैं।”[8]
अब्दुल्ला का अर्थ है 'अल्लाह का दास' और अब्दुर-रहमान का अर्थ है 'सर्वाधिक लाभ पहुंचाने वाले का दास'।
छोटी-छोटी बातों को न भूलें
माता-पिता को बच्चों के विकास के प्रत्येक चरण का बारीकी से निगरानी करना चाहिए; जैसे-जैसे वे बढ़ते हैं, उन्हें आवश्यक कौशल सिखाना चाहिए। उदाहरण के लिए, जब बच्चे छोटे होते हैं, तो बच्चों को उचित शिष्टाचार और तौर-तरीके सिखाना चाहिए। बाद में, उन्हें एक निश्चित तरीके से व्यवहार करने का कारण बताना चाहिए। इस स्तर पर बताई गई कहानियां शायद ही कोई कभी भुल पाता है।
बच्चो को दुआ और क़ुरआन भी याद करने को कहना चाहिए। यदि उन्हें इन 'छोटी-छोटी चीजों' के साथ पाला जाए, तो वे निश्चित रूप से अपने जीवन में सबसे स्वस्थ तरीके से आगे बढ़ने में सक्षम होंगे।
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