इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 1): बड़ा पाप क्या होता है?
विवरण: पाप की अवधारणा का संक्षिप्त परिचय और बड़े और छोटे पापों के बीच अंतर। इस लेख मे बड़े पापों के बारे मे बताया गया है, बड़े पाप क्या हैं, और व्यक्ति और समाज दोनों पर इनके क्या परिणाम होते हैं?
द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 24 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 4,127 (दैनिक औसत: 6)
उद्देश्य:
·बड़े पाप को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना।
·बड़े और छोटे पापों के बीच अंतर समझना।
·बड़े पापों को सूचीबद्ध करना।
अरबी शब्द:
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
·रिबा - ब्याज।
·दुआ - याचना, प्रार्थना, अल्लाह से कुछ मांगना।
·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
पाप क्या है?
कोई भी ऐसा कार्य जिससे कोई व्यक्ति अल्लाह के कानून की अवहेलना करता है, इस्लाम मे उसे पाप कहते हैं। वे ऐसे कार्य हैं जिन्हें अल्लाह ने क़ुरआन में या पैगंबर मुहम्मद ने अपनी सुन्नत में मना किया है। क़ुरआन हमें उन लोगों के बारे में बताता है जिनके दिल उनके द्वारा किये गए पापों से ढक गए हैं। (क़ुरआन 83:14), पैगंबर मुहम्मद ने इस श्लोक को यह कहकर समझाया कि जब कोई व्यक्ति एक बार पाप करता है, तो उसके दिल पर एक कला निशान लग जाता है। अंततः यदि कोई व्यक्ति बहुत से पाप कर के काले निशान लगा लेता है तो उसका दिल पूरी तरह से ढक जाता है और कठोर हो जाता है। फिर अल्लाह के पास वापस जाने का रास्ता और भी मुश्किल हो जाता है, लेकिन कभी निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि अल्लाह बहुत क्षमाशील है और जो लोग पश्चाताप करने के लिए उसकी ओर मुड़ते हैं, अल्लाह उन्हें क्षमा कर देता है।
“उन लोगों को जो बचते हैं महा पापों तथा निर्लज्जा से, कुछ चूक के सिवा। वास्तव में, आपका पालनहार उदार, क्षमाशील है। वह भली-भांति जानता है तुम्हें, जबकि उसने पैदा किया तुम्हें धरती से तथा जब तुम भ्रुण थे अपनी माताओं के गर्भ में। अतः, अपने में पवित्र न बनो। वही भली-भांति जानता है उसे, जिसने सदाचार किया है।” (क़ुरआन 53: 32)
बड़े और छोटे पाप में क्या अंतर है?
इस्लाम पापों को व्यक्तियों और समाज पर उनके परिणामों की गंभीरता के अनुसार वर्गीकृत करता है। इस्लाम में बड़ा पाप वह है जिसके खिलाफ सीधे क़ुरआन में चेतावनी दी गई है, इस जीवन में या उसके बाद के जीवन में एक विशिष्ट सजा के संदर्भ में। इसमें अल्लाह के खिलाफ उल्लंघन शामिल है जैसे कि मूर्तियों या अल्लाह के सिवा किसी अन्य की पूजा करना। अन्य प्रमुख पापों में हत्या, चोरी, झूठी गवाही, रिश्वत, बदनामी, व्यभिचार और शराब पीना शामिल हैं। व्यक्तियों और समाजों पर इनके विनाशकारी परिणामों के कारण इन कार्यों को गंभीर माना जाता है। अन्य पाप जो आमतौर पर अधिक व्यक्तिगत होते हैं उन्हें छोटा माना जाता है। वे ऐसे कार्य हैं जिनके बारे में अल्लाह ने अत्यधिक क्रोध नही दिखाया है, और दंड या चेतावनी नहीं दी है।
पाप से क्यों बचें, विशेषकर बड़े पाप से?
यदि अल्लाह आपकी दुआ को स्वीकार नहीं करता है, तो इसके कारणों मे से एक कारण बड़े पाप हो सकता है। अपने आप से पूछें कि यदि आप पाप करते रहेंगे और उसे नहीं छोड़ेंगे या पश्चाताप नहीं करेंगे, तो अल्लाह आपकी दुआ को क्यों स्वीकार करेगा। एक आस्तिक के लिए बड़े पापों से बचना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे कई कठोर दंड मिल सकते हैं और अल्लाह ने इनसे बचने वालों को स्वर्ग की गारंटी दी है।
“तथा यदि तुम, उन महा पापों से बचते रहे, जिनसे तुम्हें रोका जा रहा है, तो हम तुम्हारे लिए तुम्हारे दोषों को क्षमा कर देंगे और तुम्हें सम्मानित स्थान में प्रवेश देंगे।”(क़ुरआन 4:31)
बड़े पाप क्या हैं?
इस्लामिक विद्वता के सैकड़ों वर्षों में इस्लाम में बड़े पापों की कई सूचियां संकलित की गई हैं। आज हम अबू हुरैरा द्वारा बताई गई हदीस से अपना पाठ शुरू करेंगे। पैगंबर ने कहा, "सात बड़े विनाशकारी पापों से बचें।" उन्होंने (लोगों ने) पूछा, "वे क्या हैं?" पैगंबर ने इस प्रकार उत्तर दिया:
1)अल्लाह की पूजा मे साझीदारों को शामिल करना।
2)तांत्रिक साधना करना।
3)रिबा (सूदखोरी) करना।
4)बिना किसी उचित कारण के किसी की हत्या करना।
5)अनाथ की संपत्ति गलत तरीके से हड़पना।
6)युद्ध से पीठ दिखा के भागना।
7)पवित्र महिलाओं पर अनैतिकता का आरोप लगाना।
आइए हम इन पापों को अधिक बारीकी से जानें।
1)शिर्क करना या अल्लाह का साझीदार बनाना सबसे गंभीर पाप है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "क्या मैं आपको सबसे गंभीर पापों के बारे में न बता दूं?" हमने कहा, "बेशक, ऐ अल्लाह के दूत!" उन्होंने कहा, "पूजा के कार्य मे अल्लाह के साथ किसी अन्य को साझी बनाना।”[1]
“निःसंदेह अल्लाह ये नहीं क्षमा करेगा कि उसका साझी बनाया जाये और उसके सिवा जिसे चाहे, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह का साझी बनाता है, तो उसने महा पाप गढ़ लिया।” (क़ुरआन 4:48)
2)टोना-टोटका, जादू-टोना, भविष्यवाणी करना, ज्योतिष और भाग्य बताना सभी को टोना-टोटका के शीर्षक के अंतर्गत शामिल किया गया है जो उन सात पापों में से एक है जो किसी व्यक्ति को नर्क में ले जा सकता है। जादू टोना नुकसान पहुंचाता है और इसमें कोई लाभ नहीं होता है। जो इसे सीखता या करता है, उसके बारे मे अल्लाह ने कहा है, ". . .परन्तु फिर भी ऐसी बातें सीखते थे, जो उनके लिए हानिकारक हों और लाभकारी न हों. . ." (क़ुरआन 2:102)
3)क़ुरआन में अल्लाह ने रिबा करने वाले लोगों के सिवा किसी ओर से जंग का ऐलान नहीं किया है।
“ऐ विश्वासियों! अल्लाह से डरो और जो ब्याज शेष रह गया है, उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमान रखने वाले हो तो। और यदि तुमने ऐसा नहीं किया, तो अल्लाह तथा उसके दूत से युध्द के लिए तैयार हो जाओ” (क़ुरआन 2:278-279)
रिबा भाईचारे और सहानुभूति की भावना के विरुद्ध है, और लालच, स्वार्थ और कठोर हृदय पर आधारित है। यह मुद्रास्फीति के लिए प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक है और बढ़ते कर्ज के कारण आघात और अवसाद का कारण बनता है। रिबा नुकसान की किसी भी संभावना के बिना लाभ की गारंटी देता है, इसलिए दोनों पक्षों के लिए बराबर-बराबर जोखिम और मुनाफे के बजाय, उधार लेने वाला सभी जोखिम उठाता है। रिबा समाज में एकाधिकार भी बनाता है, जहां अमीरों को अमीर होने का फायदा मिलता है, जबकि गरीब को अतिरिक्त भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाता है।
4)इस्लाम में सबसे गंभीर पापों में से एक जानबूझ कर किसी की हत्या करना है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस्लाम एक आचार संहिता का प्रतीक है, जिसे व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है, जिसमें उसके सुरक्षित समुदाय में रहने का अधिकार भी शामिल है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "एक आदमी अपने धर्म में तब तक स्वस्थ रहेगा जब तक वह खून नहीं बहायेगा, जिसे बहाने के लिए मना किया जाता है।”[2]
5)अनाथों के अभिभावकों और देखभाल करने वालों को अपने ट्रस्ट में संपत्ति का सही तरीके से और केवल अनाथ के लाभ के लिए उपयोग करना चाहिए। देखभाल करने वाले को बहुत सावधान रहना चाहिए कि वह अनाथ का कोई भी पैसा खुद पर खर्च न करे क्योंकि यह एक बहुत ही गंभीर अपराध है। इस्लाम निष्पक्षता और न्याय से संबंधित है और एक अनाथ के कल्याण की जिम्मेदारी लेना एक बड़ी जिम्मेदारी है जिसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।
“जो लोग अनाथों का धन अत्याचार से खाते हैं, वे अपने पेटों में आग भरते हैं और शीघ्र ही नरक की अग्नि में प्रवेश करेंगे।” (क़ुरआन 4:10)
- इस्लाम में परवरिश (2 का भाग 1)
- इस्लाम मे परवरिश (2 का भाग 2)
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 1): बड़ा पाप क्या होता है?
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 1)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 2)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 3)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 1): दिन शुरू होगा
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 2): न्याय से पहले
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 3): न्याय शुरू होगा
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 1)
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 2)
- सूरह अल-अस्र की व्याख्या
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 1): मृत्यु अंत नहीं है
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 2): न्याय के दिन तक आपका ठिकाना
- तकवा के फल (2 का भाग 1)
- तकवा के फल (2 का भाग 2)
- सूरह अल-इखलास की व्याख्या
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 1): पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 2): पड़ोसी - अच्छा और बुरा
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 1): अल्लाह की दया प्रकट होगी
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 2): छाया मे रहने का प्रयास