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पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता (2 का भाग 2)

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विवरण: पैगंबर मुहम्मद के पैगंबर बनने से पहले और बाद के चरित्र और नैतिकता पर दो भागो वाला पाठ।

द्वारा Imam Mufti (© 2016 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 25 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,680 (दैनिक औसत: 4)


उद्देश्य

·पैगंबर मुहम्मद की सच्चाई, बहादुरी, निष्पक्षता, दया, ईमानदारी और विनम्रता के बारे में जानना।

अरबी शब्द

·नमाज - आस्तिक और अल्लाह के बीच सीधे संबंध को दर्शाने के लिए अरबी का एक शब्द। अधिक विशेष रूप से, इस्लाम में यह औपचारिक पाँच दैनिक प्रार्थनाओं को संदर्भित करता है और पूजा का सबसे महत्वपूर्ण रूप है।

·मस्जिद - प्रार्थना स्थल का अरबी शब्द।

सच्चाई

पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की पत्नी आयशा ने कहा:

“जिस अवगुण और लक्षण से पैगंबर को सबसे ज्यादा नफरत थी, वह था झूठ। यदि कोई व्यक्ति पैगंबर के सामने झूठ बोलता, तो पैगंबर उसके साथ तब तक नही रहते जब तक की वह व्यक्ति पश्चाताप न कर ले।”[1]

आश्चर्यजनक रूप से, उनके शत्रुओं ने उनकी सच्चाई को प्रमाणित किया था। इस्लाम के कट्टर दुश्मनों में से एक अबू जहल ने कहा: "ऐ मुहम्मद! मैं यह नहीं कहता कि तुम झूठे हो! मैं केवल उस बात से इनकार करता हूं जो तुम लाए हो और जिस ओर तुम लोगों को बुलाते हो।” अल्लाह कहता है::

“हम जानते हैं कि उनकी बातें आपको उदासीन कर देती हैं, तो वास्तव में वे आपको नहीं झुठलाते, परन्तु ये अत्याचारी अल्लाह के छंदो को नकारते हैं।” (क़ुरआन 6:33)

शौर्य और साहस

अली ने कहा:

“तुम्हें पैगंबर को बद्र के दिन देखना चाहिए था! हमने अल्लाह के दूत की शरण मांगी। वह हम में से दुश्मन के सबसे करीब थे। उस दिन, अल्लाह के दूत हम में सबसे शक्तिशाली थे।”[2]

अनस ने शांतिकाल में उनके साहस की बात करते हुए कहा:

“अल्लाह के दूत सबसे अच्छे लोगो में से थे और साहसी थे। एक रात मदीना के लोग डर गए और रात में सुनाई देने वाली आवाज़ों की ओर चल पड़े। अल्लाह के दूत आवाज आने वाली जगह से वापस आते समय उनसे मिले, और लोगो को सुनिश्चित किया कि कोई परेशानी वाली बात नहीं है। वह बिना किसी काठी के अबू तल्हा के घोड़े पर सवारी करते थे, और उनकी तलवार उनके पास होती थी। वह लोगों को आश्वस्त करते हुए कहते थे: 'डरो मत! भयभीत न हो!”[3]

वह लोगो के साथ बिना काठी के घोड़े पर सवार थे, और उनकी तलवार उनके पास थी। उन्होंने पहल की और मुसीबत के स्रोत की जांच के लिए दूसरों की प्रतीक्षा नहीं की।

न्याय और निष्पक्षता

अल्लाह के दूत अपने जीवन के हर पहलू में और धर्म लागू करने मे निष्पक्ष थे। आयशा ने कहा:

“कुरैश के लोग मखजूम की जनजाति की एक चोरी करने वाली महिला के बारे में बहुत चिंतित थे। उन्होंने अपने आप से बात करते हुए कहा, 'अल्लाह के दूत के सामने उसकी वकालत कौन कर सकता है?’

उन्होंने अंत में कहा: 'इस मामले में अल्लाह के दूत से बात करने की हिम्मत ज़ैद के बेटे उसामा के सिवाय कौन कर सकता है, उसामा अल्लाह के दूत के सबसे प्यारे जवान युवक थे।' तो उसामा ने अल्लाह के दूत से उस औरत के बारे में बात की। अल्लाह के दूत ने कहा:

‘ऐ उसामा! क्या आप अल्लाह के दण्डों में से किसी एक की अवहेलना करने के लिए उनकी ओर से हस्तक्षेप करते हैं!'’

अल्लाह के दूत ने उठकर उपदेश दिया और कहा:

‘तुम्हारे से पहले के लोगों को नष्ट कर दिया गया क्योंकि जब उनमें से कुलीन लोग चुराते थे, तो वे उसे जाने देते थे और यदि गरीब और कमजोर चुराते थे तो वे उसे दंडित करते थे। अल्लाह की कसम! अगर मुहम्मद की बेटी फातिमा ने चोरी की, तो मैं उसका हाथ काट दूंगा।’”[4]

उनकी निष्पक्षता की भावना इतनी तीव्र थी कि अगर उन्होंने खुद किसी को नुकसान पहुंचाया तो उन्होंने दूसरों को खुद बदला लेने की इजाजत दी। हुज़ैर के पुत्र उसैद ने कहा:

“अंसार में से एक आदमी, लोगों को चुटकुले सुना रहा था और उन्हें हंसा रहा था, और पैगंबर उसके पास से गुजरे और एक पेड़ की एक शाखा को उसे हल्के से चुभाया।

उस आदमी ने कहा: 'अल्लाह के पैगंबर! मुझे अपना बदला लेने दो!’

पैगंबर ने कहा: 'आगे बढ़ो!'

उस आदमी ने कहा: 'अल्लाह के दूत आपने वस्त्र पहना हुआ है, और जब आपने मुझे चुभाया था तो मैंने वस्त्र नही पहना था (अर्थात आपने मेरी उजागर त्वचा पर चुभाया था, इसलिए यह तभी उचित होगा जब मै आपके साथ भी ऐसा ही करूं)!’

अल्लाह के दूत ने अपने ऊपरी वस्त्र (अपने बगल को बेनकाब करने के लिए) उठाया, और अंसार ने इसे चूमा, और कहा: 'मैं केवल यही करना चाहता था, अल्लाह के दूत!’”[5]

दया और करुणा

पैगंबर सबसे दयालु थे और यह बच्चो के साथ उनके व्यवहार में भी स्पष्ट था।

“अल्लाह के दूत ने अबुल-आस की नवजात बेटी उमामा को अपनी गोद मे रखकर सलाह (नमाज़) पढ़ी थी। जब वह सजदा करते, तो उसे जमीन पर रख देते, और जब वह खड़े होते, तो उसे फिर उठा लेते।”[6]

सच्चाई

पैगंबर अपने सभी मामलों में ईमानदार और सच्चे थे, जैसा कि अल्लाह ने उन्हें क़ुरआन में आदेश दिया था:

“आप कह दें कि निश्चय मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी तथा मेरा जीवन-मरण संसार के पालनहार अल्लाह के लिए है, जिसका कोई साझी नहीं तथा मुझे इसी का आदेश दिया गया है और मैं प्रथम मुसलमानों में से हूं।” (क़ुरआन 6:162-163)

विनम्रता

अल्लाह के दूत सबसे विनम्र व्यक्ति थे। वह इतने विनम्र थे कि अगर कोई अजनबी मस्जिद में प्रवेश करता और पैगंबर को अपने साथियों के साथ बैठा हुआ देखता, तो कोई भी पैगंबर और अन्य लोगों मे अंतर नहीं कर सकता था। अनस ने कहा:

“एक बार जब हम मस्जिद में अल्लाह के दूत के साथ बैठे थे, एक आदमी ऊंट पर उनके पास आया। ऊंट को बांधने के बाद उसने पूछा: 'तुम में से मुहम्मद कौन है?' अल्लाह के दूत अपने साथियों के साथ जमीन पर बैठे थे। हमने बेडौइन को बताया: 'वह सफेद आदमी जो जमीन पर बैठा हुआ है वो मुहम्मद हैं!' पैगंबर अपने साथियों से न तो भिन्न थे और न हीअलग थे।”

पैगंबर ने गरीबों, जरूरतमंदों और विधवाओं को उनकी जरूरतों मे मदद करने में संकोच नहीं किया। अनस ने कहा:

“मदीना के लोगों की एक आंशिक रूप से पागल महिला ने पैगंबर से कहा: 'मुझे आपसे [आपकी मदद के लिए ] कुछ पूछना है।' पैगंबर ने उसकी मदद की और उसकी जरूरतों का ख्याल रखा।”[7]



फुटनोट:

[1] तिर्मिज़ी

[2] अहमद

[3] सहीह अल-बुखारी

[4] सहीह अल-बुखारी

[5] अबू दाऊद

[6] सहीह अल-बुखारी

[7] सहीह अल-बुखारी

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