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स्तर
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स्तर 1 (23)
- आस्था की गवाही
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 1)
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 2)
- नए मुसलमान बने लोगों के कुछ सामान्य प्रश्न
- ज्ञान प्राप्त करने का महत्व
- स्वर्ग (2 का भाग 1)
- स्वर्ग (2 का भाग 2)
- रात की यात्रा
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 1)
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 2)
- परिवार को बताना (2 का भाग 1)
- परिवार को बताना (2 का भाग 2)
- मुस्लिम समुदाय के साथ तालमेल बिठाना
- अच्छी संगति रखना
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 1): तौहीद की श्रेणियां
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 2): शिर्क, तौहीद का विपरीत
- पैगंबरो पर विश्वास
- धर्मग्रंथों में विश्वास
- स्वर्गदूतों में विश्वास
- न्याय के दिन में विश्वास
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 1)
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 2)
- एक नए मुस्लिम के लिए अध्ययन पद्धति
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स्तर 2 (25)
- आओ मुहम्मद के बारे मे जानें (2 का भाग 1)
- आओ मुहम्मद के बारे मे जानें (2 का भाग 2)
- पवित्र क़ुरआन का संरक्षण
- प्रार्थना (नमाज) का महत्व
- अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) का शिष्टाचार
- वुज़ू (वूदू)
- नए मुसलमानों के लिए प्रार्थना (2 का भाग 1): प्रार्थना करने से पहले
- नए मुसलमानों के लिए प्रार्थना (2 का भाग 2): प्रार्थना का विवरण
- प्रार्थना के आध्यात्मिक लाभ
- नमाज़ के चिकित्सा लाभ
- पेशाब या शौच करने का तौर-तरीका
- माहवारी
- इस्लाम के आहार कानून का परिचय
- मुस्लिम परिवार से परिचय (2 का भाग 1)
- मुस्लिम परिवार से परिचय (2 का भाग 2)
- ईश्वर के प्रति प्रेम और उसे कैसे प्राप्त करें (2 का भाग 1)
- ईश्वर के प्रति प्रेम और उसे कैसे प्राप्त करें (2 का भाग 2)
- उपवास का परिचय
- उपवास कैसे करें
- ईद और रमजान की समाप्ति
- अल्लाह कहां है?
- इब्राहिम (2 का भाग 1)
- इब्राहिम (2 का भाग 2)
- सूरह अल-फातिहा की सरल व्याख्या
- क़ुरआन के तीन छोटी सूरह की सरल व्याख्या
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स्तर 3 (30)
- क़ुरआन के लिए शुरुआती मार्गदर्शक (3 का भाग 1)
- क़ुरआन के लिए शुरुआती मार्गदर्शक (3 का भाग 2)
- क़ुरआन के लिए शुरुआती मार्गदर्शक (3 का भाग 3)
- हदीस और सुन्नत के लिए शुरुआती मार्गदर्शक
- नमाज़ का महत्व
- नमाज़ के पूर्व-आवश्यकताएँ
- इस्लाम मे स्वच्छता
- स्नान (घुस्ल)
- अंगशुद्धि (वुज़ू)
- दो रकाअत नमाज़ पढ़ना
- तीन रकाअत नमाज़ पढ़ना
- चार रकाअत नमाज़ पढ़ना
- नमाज़ के सामान्य बिंदु
- एक मुसलमान के जीवन का एक दिन (2 का भाग 1): जागने से लेकर देर सुबह तक
- एक मुसलमान के जीवन का एक दिन (2 का भाग 2): दोपहर से ले कर सोने तक
- गैर-मुस्लिमों का भाग्य
- पश्चाताप (3 का भाग 1): मोक्ष का द्वार
- पश्चाताप (3 का भाग 2): पश्चाताप की शर्तें
- पश्चाताप (3 का भाग 3): पश्चाताप की प्रार्थना
- क्या हम अल्लाह को देख सकते हैं?
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 1)
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 2)
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 3)
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 4)
- भोजन करना – इस्लामी तरीका (2 का भाग 1)
- भोजन करना – इस्लामी तरीका (2 का भाग 2)
- क़ुरआन की सबसे महानतम आयत की सरल व्याख्या: आयतुल कुर्सी
- मोज़े के ऊपर से पोंछना, छूटी हुई प्रार्थना पूरी करना, और एक यात्री की प्रार्थना
- शकुन
- टोटका और ताबीज
-
स्तर 4 (30)
- अज़ान (2 का भाग 1): प्रार्थना के लिए पुकार
- अज़ान (2 का भाग 2): प्रार्थना के लिए पुकार
- शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 1)
- शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 2)
- शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 3)
- अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) के अनुशंसित नियम
- सूरह अल-फातिहा पर विचार (3 का भाग 1)
- सूरह अल-फातिहा पर विचार (3 का भाग 2)
- सूरह अल-फातिहा पर विचार (3 का भाग 3)
- सूखी वुज़ू (तयम्मुम)
- संप्रदायों का परिचय (2 का भाग 1)
- संप्रदायों का परिचय (2 का भाग 2)
- शैतान से सुरक्षा (2 का भाग 1)
- शैतान से सुरक्षा (2 का भाग 2)
- अपने चरित्र को सुधारना
- आत्मा की शुद्धि का परिचय (2 का भाग 1)
- आत्मा की शुद्धि का परिचय (2 का भाग 2)
- इस्लामी पहनावा (3 का भाग 1)
- इस्लामी पहनावा (3 का भाग 2): अवराह और महरम
- इस्लामी पहनावा (3 का भाग 3): प्रार्थना और ज्ञान
- शैतान: मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन (2 का भाग 1)
- शैतान: मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन (2 का भाग 2)
- प्रार्थना (2 का भाग 1)
- प्रार्थना (2 का भाग 2)
- अल्लाह की दया (2 का भाग 1)
- अल्लाह की दया (2 का भाग 2)
- इस्लाम में रोल मॉडल (2 का भाग 1): मुसलमानों की पहली पीढ़ी
- इस्लाम में रोल मॉडल (2 का भाग 2)
- धर्म परिवर्तन के बाद परीक्षा और समस्याएं (2 का भाग 1): जीवन की कठिनाइयों में अल्लाह की दया होती है
- धर्म परिवर्तन के बाद परीक्षण और समस्याएं (2 का भाग 2)
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स्तर 5 (29)
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 1)
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 2)
- अच्छी आदतें जो नए मुसलमानों को सीखना चाहिए
- पैगंबर नूह के जीवन की झलकियां
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 1)
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 2)
- पैगंबर इब्राहिम के जीवन की झलकियां
- विवाह सलाह (2 का भाग 1)
- विवाह सलाह (2 का भाग 2): व्यावहारिक कदम
- पतियों और पत्नियों के अधिकार और जिम्मेदारियां
- इस्लामी विवाह के विस्तृत व्यावहारिक पहलू
- पैगंबर लूत के जीवन की झलकियां
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 1): धैर्य, कृतज्ञता और विश्वास
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 2): अल्लाह के साथ संबंध स्थापित करें
- पैगंबर युसूफ के जीवन की झलकियां
- इस्तिखारा प्रार्थना
- पैगंबर अय्यूब के जीवन की झलकियां
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 1)
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 2)
- पैगंबर मूसा के जीवन की झलकियां
- क्या मुझे अपना नाम बदलना चाहिए?
- पैगंबर ईसा के जीवन की झलकियां
- संदेह से निपटना
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 1): मक्का अवधि
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 2): मदीना अवधि
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 1)
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 2)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 1)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 2)
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स्तर 6 (27)
- स्वैच्छिक प्रार्थना
- जानवरों के प्रति व्यवहार
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 1)
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 2)
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 1): आस्था हमेशा स्थिर स्तर पर क्यों नहीं रहती
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 2): अपनी आस्था (ईमान) बढ़ाना और पुरस्कार अर्जित करना
- स्वैच्छिक उपवास
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 1): छोटी निशानियां
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 2): प्रमुख निशानियां
- व्यभिचार, वैश्यावृति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 1)
- व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 2)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 1)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 2)
- शरिया का परिचय (2 का भाग 1)
- शरिया का परिचय (2 का भाग 2)
- मानव स्वभाव के अनुरूप कार्य (सुनन अल-फ़ित्रह)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 1)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 2)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 3)
- इस्लाम में नवाचार (2 का भाग 1): बिदअत के दो प्रकार
- इस्लाम में नवाचार (2 का भाग 2): क्या यह एक बिदअत है?
- रमजान: अंतिम दस रातें
- उम्रह (2 का भाग 1)
- उम्रह (2 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 1)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 3)
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स्तर 7 (30)
- इस्लाम में परवरिश (2 का भाग 1)
- इस्लाम मे परवरिश (2 का भाग 2)
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 1): बड़ा पाप क्या होता है?
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 1)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 2)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 3)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 1): दिन शुरू होगा
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 2): न्याय से पहले
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 3): न्याय शुरू होगा
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 1)
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 2)
- सूरह अल-अस्र की व्याख्या
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 1): मृत्यु अंत नहीं है
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 2): न्याय के दिन तक आपका ठिकाना
- तकवा के फल (2 का भाग 1)
- तकवा के फल (2 का भाग 2)
- सूरह अल-इखलास की व्याख्या
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 1): पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 2): पड़ोसी - अच्छा और बुरा
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 1): अल्लाह की दया प्रकट होगी
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 2): छाया मे रहने का प्रयास
-
स्तर 8 (29)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास बनाम रिया (2 का भाग 2)
- वैध कमाई
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: सलमान अल-फ़ारसी
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: बिलाल इब्न रबाह
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अम्मार इब्न यासिर
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: ज़ायद इब्न थाबित
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अबू हुरैरा
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 1)
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 2)
- नमाज़ में खुशू
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 1): संदेश को यथासंभव सर्वोत्तम तरीके से फैलाएं
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 2): सबसे पहले तौहीद
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 3): परिवार के लोगो, दोस्तों और सहकर्मियों को आमंत्?
- अल्लाह पर भरोसा और निर्भरता
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (2 का भाग 1)
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (भाग 2 का 2)
- अभिमान और अहंकार
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 1): विश्वासियों की माताएँ कौन हैं?
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 2): परोपकारिता और गठबंधन
- मुस्लिम समुदाय में शामिल होना
- उम्मत: मुस्लिम राष्ट्र
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 1)
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 2)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 1)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 2)
- मुसलमान होने के लाभ
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 1)
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)
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स्तर 9 (30)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 1)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 2)
- जीवन का उद्देश्य
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 1)
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 2)
- पैगंबरो के चमत्कार
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 1)
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 2)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 1)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 1)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 2)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 1)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 2)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 1)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 2)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 1)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 2)
- इस्लाम मे सोशल मीडिया
- आराम, मस्ती और मनोरंजन
- ज्योतिष और भविष्यवाणी
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 2)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 1)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 2)
- उपवास और दान के आध्यात्मिक लाभ
- सपने की व्याख्या
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 2)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 3)
-
स्तर 10 (26)
- जिहाद क्या है?
- पैगंबर आदम: मानवजाति की शुरुआत (2 का भाग 1)
- पैगंबर आदम: मानवजाति की शुरुआत (2 का भाग 2)
- सूरह अज़-ज़ल्ज़ला की व्याख्या
- पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता (2 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता (2 का भाग 2)
- पर्यावरण का संरक्षण
- इस्लाम में अपराध और सजा (2 का भाग 1)
- इस्लाम में अपराध और सजा (2 का भाग 2)
- भूलने का सजदा
- हदीस शब्दावली का परिचय
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मदीना अवधि (3 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मदीना अवधि (3 का भाग 2)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मदीना अवधि (3 का भाग 3)
- सृजन की कहानी (2 का भाग 1)
- सृजन की कहानी (2 का भाग 2)
- अंतिम संस्कार (2 का भाग 1)
- अंतिम संस्कार (2 का भाग 2)
- इस्लामी वसीयत और विरासत (2 का भाग 1)
- इस्लामी वसीयत और विरासत (2 का भाग 2)
- पैगंबर के कथन: ईमानदारी
- मीडिया स्टीरियोटाइपिंग को समझना
- स्वास्थ्य और फ़िटनेस (2 का भाग 1)
- स्वास्थ्य और फ़िटनेस (2 का भाग 2)
- अंतरंग मुद्दे
- इस्लाम कुछ विचित्र के रूप में शुरू हुआ
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इस्लाम में अपराध और सजा (2 का भाग 2)
विवरण: दंड के रूपों का अधिक विस्तृत विवरण और इस्लामी दंड व्यवस्था के उद्देश्यों पर स्पष्टीकरण।
द्वारा Imam Mufti (© 2016 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·हद्द अपराधों, प्रतिकार और विवेकाधीन दंड के लिए निर्धारित दंड के बारे में जानना।
·इस्लामी दंड व्यवस्था के तीन उद्देश्यों के बारे में जानना।
अरबी शब्द
·हद्द - निश्चित अपराध।
·शुबहा - अनिश्चितता।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
इस्लामी कानून में सजा के प्रकार
1-हद्द अपराधों के लिए निर्धारित सजा
हद्द अपराधों के लिए निश्चित, अनिवार्य दंड है जो क़ुरआन या पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की सुन्नत पर आधारित है। इन दंडों को निर्धारित करने की संस्था का मुख्य उद्देश्य समाज के हानिकारक कृत्यों को रोकना है।
हद्द अपराधों के कानून की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि सिद्धांत ने दोषसिद्धि को अत्यंत कठिन बना दिया है। यह तीन कारकों से प्राप्त किया जाता है:
(1)इन अपराधों को साबित करने के लिए सबूत के सख्त नियम।
(2)अधिकांश परिस्थितियों में कठोर दंड को स्थगित करने के लिए अपराधों के निर्धारण में शुबहा (अनिश्चितता) की धारणा का व्यापक उपयोग।
(3)उन अपराधों की परिभाषा को सीमित करना जो सख्त निर्धारित दंड देते हैं ताकि कई समान उल्लंघन दायरे से बाहर हो जाएं और उन्हें निश्चित दंड से दंडित नहीं किया जा सके, लेकिन केवल न्यायाधीश के विवेक के आधार पर।
निश्चित दंड वाले अपराध हैं:
·चोरी
·राजमार्ग डकैती
·अवैध संभोग
·ग़ैरक़ानूनी संभोग का निराधार आरोप (निंदा, बदनामी, मानहानि)
·शराब पीना
·धर्मत्याग
जब कोई मुस्लिम ऐसा बयान देता है या ऐसी कार्य करता है जिससे वह इस्लाम से बाहर हो जाये, तो उसे धर्मत्याग कहते हैं। इसकी सजा पैगंबर मुहम्मद के समय मौजूद समस्याओं के लिए एक उपाय के रूप में थी। धोखेबाजों का एक समूह सार्वजनिक रूप से इस्लाम में प्रवेश करता और फिर उसे छोड़ देता ताकि विश्वासियों के बीच अनिश्चितता पैदा हो और आम लोगों की आस्था पर सवाल उठाया जा सके। क़ुरआन इस वास्तविकता से संबंधित है:
“पवित्रशास्त्र के एक समुदाय ने कहा कि दिन के आरंभ में उसपर ईमान ले आओ, जो ईमान वालों पर उतारा गया है और उसके अन्त (अर्थातः संध्या-समय) कुफ़्र कर दो, संभवतः वे फिर जायें।’” (क़ुरआन 3:72)
इस तरह के व्यवहार को रोकने के लिए धर्मत्याग के लिए निर्धारित दंड की व्यवस्था की गई थी।
2-प्रतिकार
यह इस्लामी कानून में सजा का एक अन्य रूप है। अपराध के अपराधी को उसी चोट के साथ दंडित किया जाता है जो उसने पीड़ित को दिया था। यदि अपराधी ने पीड़ित को मार डाला है, तो अपराधी को भी मार दिया जाता है। यदि उसने पीड़ित के एक अंग को काट दिया है या उसे घायल कर दिया है, तो अपराधी को मारे बिना संभव है तो उसका अंग काट दिया जाएगा या घायल कर दिया जाएगा। इसे निर्धारित करने के लिए विशेषज्ञों की सलाह ली जाती है।
3-विवेकाधीन दंड
ये ऐसी सजाएं हैं जो इस्लामी कानून द्वारा तय नहीं की गई हैं। ये उन अपराधों के लिए हैं जो या तो अल्लाह के अधिकारों या किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, लेकिन इसके लिए क़ुरआन या सुन्नत में निश्चित दंड या निर्धारित प्रायश्चित नहीं है। ये सबसे लचीले प्रकार की सजा हैं क्योंकि ये समाज की जरूरतों और बदलती परिस्थितियों को ध्यान में रखकर दी जाती है। इस्लामिक कानून ने विभिन्न प्रकार के विवेकाधीन दंडों को परिभाषित किया है जिसमें फटकार से लेकर कोड़े मारने, मौद्रिक जुर्माना और कारावास शामिल है।
इस्लामी दंड व्यवस्था के उद्देश्य
पहला उद्देश्य: इस्लाम समाज को अपराध से बचाना चाहता है। बड़े पैमाने पर आपराधिक व्यवहार समाज को रहने के लिए असुरक्षित बनाते हैं और अगर इन्हे अनियंत्रित छोड़ दिया जाये तो यह व्यक्ति के अस्तित्व को खतरे में डाल देते हैं। इस्लाम सामाजिक एकता और सुरक्षा स्थापित करना चाहता है, जिससे शांति को बढ़ावा मिल सके। इसमें विधायी दंड हैं जो अपराध को हतोत्साहित करने के लिए हैं। इस उद्देश्य का उल्लेख निम्नलिखित छंद मे किया गया है जो प्रतिशोध और समाज पर इसके प्रभाव की चर्चा करता है:
“और ऐ समझ वालो! तुम्हारे लिए प्रतिकार मे जीवन (का संरक्षण) है, ताकि तुम रक्तपात से बचो।” (क़ुरआन 2:179)
कोई अपराध करने से पहले दो बार सोचेगा यदि उसे अपने अपराध के नकारात्मक परिणामों का पता हो। सजा के बारे में जागरूकता अपराधी को दो तरह से अपराध करने से रोकता है:
ए)वह अपराधी जो पहले से ही सजा के अधीन है, इसकी अधिक संभावना है कि वह फिर से अपराध नहीं दोहराएगा।
बी)जहां तक शेष समाज की बात है, इस सजा के प्रभावों के बारे में उनकी जागरूकता उन्हें अपराध में पड़ने से बचाएगी।
आपराधिक व्यवहार को रोकने के लिए, इस्लाम को सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करने की आवश्यकता है कि क़ुरआन के छंद के आधार पर इसे कब किया जाएगा:
“…दंड के समय उपस्थित रहे विश्वासियों का एक समूह।” (क़ुरआन 24:2)
दूसरा उद्देश्य: इस्लाम का उद्देश्य वास्तव में अपराधी को सुधारना है। क़ुरआन अक्सर अपराधों के साथ पश्चाताप का उल्लेख इस तथ्य को उजागर करने के लिए करता है कि पश्चाताप का द्वार हमेशा खुला रहता है। कुछ मामलों में, इस्लाम ने पश्चाताप को एक निश्चित सजा को माफ करने का एक साधन बना दिया है। उदाहरण के लिए, राजमार्ग डकैती की सजा के संदर्भ में, अल्लाह क़ुरआन मे कहता है:
“…परन्तु जो पश्चाताप (क्षमा याचना) कर लें, इससे पहले कि तुम उन्हें अपने नियंत्रण में लाओ, तो तुम जान लो कि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।” (क़ुरआन 5:34)
व्यभिचार की सजा के बारे में अल्लाह कहता है:
“जब वे पश्चाताप (क्षमा याचना) कर लें और अपना सुधार कर लें, तो उन्हें छोड़ दो। निश्चय ही अल्लाह पश्चाताप को स्वीकार करने वाला, दयावान् है।” (क़ुरआन 4:16)
झूठे आरोप की सजा के बारे मे बताने के बाद अल्लाह कहता है:
“… सिवाय उन लोगों के जो बाद में पश्चाताप कर लें और सुधार कर लें, तो निश्चय ही अल्लाह क्षमा करने वाला, दयावान है।”
चोरी के लिए निर्धारित सजा का उल्लेख करने के बाद अल्लाह यह भी कहता है:
“फिर जो अपने अत्याचार (चोरी) का पश्चाताप (क्षमा याचना) कर ले और अपने को सुधार ले, तो अल्लाह उसके पश्चाताप को स्वीकार कर लेगा। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।” (क़ुरआन 5:39)
यह उद्देश्य विवेकाधीन दंडों के लिए अधिक प्रासंगिक है जहां न्यायाधीश अपराधी की परिस्थितियों को ध्यान में रखता है और उसके सुधार को सुनिश्चित करता है।
तीसरा उद्देश्य: दंड अपराध की एक प्रतिपूर्ति है। समाज की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले अपराधी के साथ हल्का व्यवहार करना अवांछनीय है। अपराधी को उसकी उचित सजा मिलनी चाहिए। सुरक्षित रहना समाज और उसके व्यक्तिगत सदस्यों का अधिकार है। क़ुरआन इस उद्देश्य का उल्लेख कई दंडों के साथ करता है। उदाहरण के लिए, अल्लाह कहता है:
“चोर, पुरुष और स्त्री दोनों के हाथ काट दो, उनके करतूत के बदले...” (क़ुरआन 5:38)
“जो लोग अल्लाह और उसके दूत से युध्द करते हों तथा धरती में उपद्रव करते फिर रहे हों, उनका दंड ये है कि उनकी हत्या की जाये तथा उन्हें फांसी दी जाये अथवा उनके हाथ-पैर विपरीत दिशाओं से काट दिये जायें अथवा उन्हें देश निकाला दे दिया जाये। ये उनके लिए संसार में अपमान है तथा परलोक में उनके लिए इससे बड़ा दंड है।…” (क़ुरआन 5:33)
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