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स्तर
-
स्तर 1 (23)
- आस्था की गवाही
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 1)
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 2)
- नए मुसलमान बने लोगों के कुछ सामान्य प्रश्न
- ज्ञान प्राप्त करने का महत्व
- स्वर्ग (2 का भाग 1)
- स्वर्ग (2 का भाग 2)
- रात की यात्रा
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 1)
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 2)
- परिवार को बताना (2 का भाग 1)
- परिवार को बताना (2 का भाग 2)
- मुस्लिम समुदाय के साथ तालमेल बिठाना
- अच्छी संगति रखना
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 1): तौहीद की श्रेणियां
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 2): शिर्क, तौहीद का विपरीत
- पैगंबरो पर विश्वास
- धर्मग्रंथों में विश्वास
- स्वर्गदूतों में विश्वास
- न्याय के दिन में विश्वास
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 1)
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 2)
- एक नए मुस्लिम के लिए अध्ययन पद्धति
-
स्तर 2 (25)
- आओ मुहम्मद के बारे मे जानें (2 का भाग 1)
- आओ मुहम्मद के बारे मे जानें (2 का भाग 2)
- पवित्र क़ुरआन का संरक्षण
- प्रार्थना (नमाज) का महत्व
- अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) का शिष्टाचार
- वुज़ू (वूदू)
- नए मुसलमानों के लिए प्रार्थना (2 का भाग 1): प्रार्थना करने से पहले
- नए मुसलमानों के लिए प्रार्थना (2 का भाग 2): प्रार्थना का विवरण
- प्रार्थना के आध्यात्मिक लाभ
- नमाज़ के चिकित्सा लाभ
- पेशाब या शौच करने का तौर-तरीका
- माहवारी
- इस्लाम के आहार कानून का परिचय
- मुस्लिम परिवार से परिचय (2 का भाग 1)
- मुस्लिम परिवार से परिचय (2 का भाग 2)
- ईश्वर के प्रति प्रेम और उसे कैसे प्राप्त करें (2 का भाग 1)
- ईश्वर के प्रति प्रेम और उसे कैसे प्राप्त करें (2 का भाग 2)
- उपवास का परिचय
- उपवास कैसे करें
- ईद और रमजान की समाप्ति
- अल्लाह कहां है?
- इब्राहिम (2 का भाग 1)
- इब्राहिम (2 का भाग 2)
- सूरह अल-फातिहा की सरल व्याख्या
- क़ुरआन के तीन छोटी सूरह की सरल व्याख्या
-
स्तर 3 (30)
- क़ुरआन के लिए शुरुआती मार्गदर्शक (3 का भाग 1)
- क़ुरआन के लिए शुरुआती मार्गदर्शक (3 का भाग 2)
- क़ुरआन के लिए शुरुआती मार्गदर्शक (3 का भाग 3)
- हदीस और सुन्नत के लिए शुरुआती मार्गदर्शक
- नमाज़ का महत्व
- नमाज़ के पूर्व-आवश्यकताएँ
- इस्लाम मे स्वच्छता
- स्नान (घुस्ल)
- अंगशुद्धि (वुज़ू)
- दो रकाअत नमाज़ पढ़ना
- तीन रकाअत नमाज़ पढ़ना
- चार रकाअत नमाज़ पढ़ना
- नमाज़ के सामान्य बिंदु
- एक मुसलमान के जीवन का एक दिन (2 का भाग 1): जागने से लेकर देर सुबह तक
- एक मुसलमान के जीवन का एक दिन (2 का भाग 2): दोपहर से ले कर सोने तक
- गैर-मुस्लिमों का भाग्य
- पश्चाताप (3 का भाग 1): मोक्ष का द्वार
- पश्चाताप (3 का भाग 2): पश्चाताप की शर्तें
- पश्चाताप (3 का भाग 3): पश्चाताप की प्रार्थना
- क्या हम अल्लाह को देख सकते हैं?
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 1)
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 2)
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 3)
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 4)
- भोजन करना – इस्लामी तरीका (2 का भाग 1)
- भोजन करना – इस्लामी तरीका (2 का भाग 2)
- क़ुरआन की सबसे महानतम आयत की सरल व्याख्या: आयतुल कुर्सी
- मोज़े के ऊपर से पोंछना, छूटी हुई प्रार्थना पूरी करना, और एक यात्री की प्रार्थना
- शकुन
- टोटका और ताबीज
-
स्तर 4 (30)
- अज़ान (2 का भाग 1): प्रार्थना के लिए पुकार
- अज़ान (2 का भाग 2): प्रार्थना के लिए पुकार
- शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 1)
- शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 2)
- शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 3)
- अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) के अनुशंसित नियम
- सूरह अल-फातिहा पर विचार (3 का भाग 1)
- सूरह अल-फातिहा पर विचार (3 का भाग 2)
- सूरह अल-फातिहा पर विचार (3 का भाग 3)
- सूखी वुज़ू (तयम्मुम)
- संप्रदायों का परिचय (2 का भाग 1)
- संप्रदायों का परिचय (2 का भाग 2)
- शैतान से सुरक्षा (2 का भाग 1)
- शैतान से सुरक्षा (2 का भाग 2)
- अपने चरित्र को सुधारना
- आत्मा की शुद्धि का परिचय (2 का भाग 1)
- आत्मा की शुद्धि का परिचय (2 का भाग 2)
- इस्लामी पहनावा (3 का भाग 1)
- इस्लामी पहनावा (3 का भाग 2): अवराह और महरम
- इस्लामी पहनावा (3 का भाग 3): प्रार्थना और ज्ञान
- शैतान: मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन (2 का भाग 1)
- शैतान: मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन (2 का भाग 2)
- प्रार्थना (2 का भाग 1)
- प्रार्थना (2 का भाग 2)
- अल्लाह की दया (2 का भाग 1)
- अल्लाह की दया (2 का भाग 2)
- इस्लाम में रोल मॉडल (2 का भाग 1): मुसलमानों की पहली पीढ़ी
- इस्लाम में रोल मॉडल (2 का भाग 2)
- धर्म परिवर्तन के बाद परीक्षा और समस्याएं (2 का भाग 1): जीवन की कठिनाइयों में अल्लाह की दया होती है
- धर्म परिवर्तन के बाद परीक्षण और समस्याएं (2 का भाग 2)
-
स्तर 5 (29)
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 1)
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 2)
- अच्छी आदतें जो नए मुसलमानों को सीखना चाहिए
- पैगंबर नूह के जीवन की झलकियां
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 1)
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 2)
- पैगंबर इब्राहिम के जीवन की झलकियां
- विवाह सलाह (2 का भाग 1)
- विवाह सलाह (2 का भाग 2): व्यावहारिक कदम
- पतियों और पत्नियों के अधिकार और जिम्मेदारियां
- इस्लामी विवाह के विस्तृत व्यावहारिक पहलू
- पैगंबर लूत के जीवन की झलकियां
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 1): धैर्य, कृतज्ञता और विश्वास
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 2): अल्लाह के साथ संबंध स्थापित करें
- पैगंबर युसूफ के जीवन की झलकियां
- इस्तिखारा प्रार्थना
- पैगंबर अय्यूब के जीवन की झलकियां
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 1)
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 2)
- पैगंबर मूसा के जीवन की झलकियां
- क्या मुझे अपना नाम बदलना चाहिए?
- पैगंबर ईसा के जीवन की झलकियां
- संदेह से निपटना
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 1): मक्का अवधि
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 2): मदीना अवधि
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 1)
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 2)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 1)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 2)
-
स्तर 6 (27)
- स्वैच्छिक प्रार्थना
- जानवरों के प्रति व्यवहार
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 1)
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 2)
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 1): आस्था हमेशा स्थिर स्तर पर क्यों नहीं रहती
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 2): अपनी आस्था (ईमान) बढ़ाना और पुरस्कार अर्जित करना
- स्वैच्छिक उपवास
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 1): छोटी निशानियां
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 2): प्रमुख निशानियां
- व्यभिचार, वैश्यावृति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 1)
- व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 2)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 1)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 2)
- शरिया का परिचय (2 का भाग 1)
- शरिया का परिचय (2 का भाग 2)
- मानव स्वभाव के अनुरूप कार्य (सुनन अल-फ़ित्रह)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 1)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 2)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 3)
- इस्लाम में नवाचार (2 का भाग 1): बिदअत के दो प्रकार
- इस्लाम में नवाचार (2 का भाग 2): क्या यह एक बिदअत है?
- रमजान: अंतिम दस रातें
- उम्रह (2 का भाग 1)
- उम्रह (2 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 1)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 3)
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स्तर 7 (30)
- इस्लाम में परवरिश (2 का भाग 1)
- इस्लाम मे परवरिश (2 का भाग 2)
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 1): बड़ा पाप क्या होता है?
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 1)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 2)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 3)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 1): दिन शुरू होगा
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 2): न्याय से पहले
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 3): न्याय शुरू होगा
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 1)
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 2)
- सूरह अल-अस्र की व्याख्या
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 1): मृत्यु अंत नहीं है
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 2): न्याय के दिन तक आपका ठिकाना
- तकवा के फल (2 का भाग 1)
- तकवा के फल (2 का भाग 2)
- सूरह अल-इखलास की व्याख्या
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 1): पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 2): पड़ोसी - अच्छा और बुरा
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 1): अल्लाह की दया प्रकट होगी
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 2): छाया मे रहने का प्रयास
-
स्तर 8 (29)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास बनाम रिया (2 का भाग 2)
- वैध कमाई
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: सलमान अल-फ़ारसी
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: बिलाल इब्न रबाह
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अम्मार इब्न यासिर
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: ज़ायद इब्न थाबित
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अबू हुरैरा
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 1)
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 2)
- नमाज़ में खुशू
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 1): संदेश को यथासंभव सर्वोत्तम तरीके से फैलाएं
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 2): सबसे पहले तौहीद
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 3): परिवार के लोगो, दोस्तों और सहकर्मियों को आमंत्?
- अल्लाह पर भरोसा और निर्भरता
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (2 का भाग 1)
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (भाग 2 का 2)
- अभिमान और अहंकार
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 1): विश्वासियों की माताएँ कौन हैं?
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 2): परोपकारिता और गठबंधन
- मुस्लिम समुदाय में शामिल होना
- उम्मत: मुस्लिम राष्ट्र
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 1)
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 2)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 1)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 2)
- मुसलमान होने के लाभ
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 1)
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)
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स्तर 9 (30)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 1)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 2)
- जीवन का उद्देश्य
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 1)
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 2)
- पैगंबरो के चमत्कार
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 1)
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 2)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 1)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 1)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 2)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 1)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 2)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 1)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 2)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 1)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 2)
- इस्लाम मे सोशल मीडिया
- आराम, मस्ती और मनोरंजन
- ज्योतिष और भविष्यवाणी
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 2)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 1)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 2)
- उपवास और दान के आध्यात्मिक लाभ
- सपने की व्याख्या
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 2)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 3)
-
स्तर 10 (26)
- जिहाद क्या है?
- पैगंबर आदम: मानवजाति की शुरुआत (2 का भाग 1)
- पैगंबर आदम: मानवजाति की शुरुआत (2 का भाग 2)
- सूरह अज़-ज़ल्ज़ला की व्याख्या
- पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता (2 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता (2 का भाग 2)
- पर्यावरण का संरक्षण
- इस्लाम में अपराध और सजा (2 का भाग 1)
- इस्लाम में अपराध और सजा (2 का भाग 2)
- भूलने का सजदा
- हदीस शब्दावली का परिचय
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मदीना अवधि (3 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मदीना अवधि (3 का भाग 2)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मदीना अवधि (3 का भाग 3)
- सृजन की कहानी (2 का भाग 1)
- सृजन की कहानी (2 का भाग 2)
- अंतिम संस्कार (2 का भाग 1)
- अंतिम संस्कार (2 का भाग 2)
- इस्लामी वसीयत और विरासत (2 का भाग 1)
- इस्लामी वसीयत और विरासत (2 का भाग 2)
- पैगंबर के कथन: ईमानदारी
- मीडिया स्टीरियोटाइपिंग को समझना
- स्वास्थ्य और फ़िटनेस (2 का भाग 1)
- स्वास्थ्य और फ़िटनेस (2 का भाग 2)
- अंतरंग मुद्दे
- इस्लाम कुछ विचित्र के रूप में शुरू हुआ
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आस्था की गवाही
विवरण: आस्था की गवाही इस्लाम धर्म का अब तक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर पूरा धर्म टिका है। यह पाठ इसके महत्व और अर्थ के बारे में जानकारी देता है।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 34 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 3,607 (दैनिक औसत: 5)
उद्देश्य
·आस्था की गवाही के महत्व को समझना।
·आस्था की गवाही का अर्थ को समझना।
अरबी शब्द
·शहादा - आस्था की गवाही
·अल्लाह - अल्लाह, ईश्वर के नामों में से एक।
·तौहीद - अल्लाह की एकता और विशिष्टता उसके प्रभुत्व, उसके नाम और गुणों के संबंध में और उसकी पूजा की जाने के अधिकार में।
परिचय
इस्लाम धर्म का मूल दो वाक्यांशों की पुष्टि है:
(i) ला-इलाहा इल्लल्लाह (जिसका अर्थ है 'अल्लाह के अलावा किसी और ईश्वर की पूजा नहीं की जाती है')
(ii) मुहम्मद रसूलु अल्लाह (जिसका अर्थ है 'मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं')
इन दो वाक्यांशों को शहादा या आस्था की गवाही के रूप में जाना जाता है। इन दो वाक्यांशों पर विश्वास और इसके सत्यापन के माध्यम से व्यक्ति इस्लाम में प्रवेश करता है। यह एक केंद्रीय मान्यता है जो एक आस्तिक जीवन भर मानता है, और यह इस दुनिया में उसकी सभी मान्यताओं, पूजा और अस्तित्व का आधार है।
नए धर्मांतरित व्यक्ति सहित प्रत्येक मुसलमान को इन दो वाक्यांशों के अर्थों को समझना होगा, और उसके अनुसार अपना जीवन जीने का प्रयास करना होगा।
आस्था की गवाही का महत्व
यह गवाही अब तक इस्लाम धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर पूरा धर्म टिका है। इस्लाम ही एकमात्र सच्चा एकेश्वरवादी धर्म है, जो इस बात पर जोर देता है कि अल्लाह के अलावा किसी और की पूजा नहीं होनी चाहिए। यह जीवन का एक तरीका है जिसमें एक व्यक्ति अल्लाह के आदेशों का पालन करता है और उनके सिवा किसी और की पूजा नहीं करता है।
आस्था की यह गवाही (शहादा) हमें जीवन में हमारे उद्देश्य की याद दिलाती है, जो कि सिर्फ अल्लाह की पूजा करना है। क़ुरआन में अल्लाह कहता है:
“और मैंने जिन्न तथा मनुष्य को सिर्फ अपनी पूजा करने के लिए पैदा किया है।” (क़ुरआन 51:56)
ईश्वर के एक होने (तौहीद) का संदेश जैसा की गवाही में है सिर्फ पैगंबर मुहम्मद (अल्लाह की दया और आशीर्वाद उन पर हो) ने नहीं बताया था, बल्कि यह अल्लाह के सभी पैगंबरों का सार्वभौमिक संदेश था। मानवता की शुरुआत के बाद से अल्लाह ने सभी लोगों और राष्ट्रों में दूत भेजे, और उन्हें सिर्फ उसकी पूजा करने का और सभी झूठे देवताओं को अस्वीकार करने का आदेश दिया। अल्लाह ने कहा:
“और हमने प्रत्येक समुदाय में एक दूत भेजा और कहा कि सिर्फ अल्लाह की पूजा करो, और अन्य किसी भी देवता की पूजा से बचो.” (क़ुरआन 16:36)
ला-इलाहा इल्लल्लाह का अर्थ
इस वाक्यांश में प्रत्येक शब्द का अर्थ है:
ला: नहीं है; इलाहा: कोई ईश्वर (देवता); इल्ला: के सिवा; अल्लाह: अल्लाह (ईश्वर)
और इसलिए इस वाक्यांश का शाब्दिक अर्थ है "अल्लाह के सिवा कोई ईश्वर (देवता) नहीं है"
इस वाक्यांश का पहला भाग: अस्वीकृति
‘कोई देवता नहीं है'... यहाँ, देवता का अर्थ है जो कुछ भी जिसकी पूजा की जाती है। बहुत से लोगों ने इस सृष्टि की चीजों को अपना देवता मान लिया है, लेकिन वो सभी गलत हैं और गलत तरीके से उनकी पूजा की जाती है, जिसका अर्थ है कि उन्हें उस पूजा का कोई अधिकार नहीं है और न ही वे इसके लायक हैं। यह अस्वीकृति सभी अंधविश्वासों, विचारधाराओं, जीवन के तरीकों, या किसी भी अधिकार के लिए है जो दैवीय भक्ति का दावा करते हैं।
कुछ लोग ईश्वर के ईश्वरीय राज्य को सांसारिक राज्यों की तरह होने की कल्पना करते हैं। जिस तरह एक राजा के कई मंत्री और भरोसेमंद सहयोगी होते हैं, ये लोग 'संत' और छोटे देवताओं को ईश्वर तक पहुंचने का मध्यस्थ मानते हैं। वे उन्हें एजेंट समझते हैं जिनके माध्यम से ईश्वर से संपर्क किया जाता है। सच तो यह है कि इस्लाम में कोई मध्यस्थ नहीं है, न ही कोई पादरी वर्ग है जिसके सामने क्षमा पाने के लिए अपने पापों को 'स्वीकार' करना चाहिए। एक मुसलमान सीधे और विशेष रूप से ईश्वर से प्रार्थना करता है। हम ज्योतिष, हस्तरेखा पढ़ना, सौभाग्य आकर्षण और भाग्य बताने जैसी अंधविश्वासी प्रथाओं को भी अस्वीकार करते हैं।
इस वाक्यांश का दूसरा भाग: पुष्टीकरण
‘अल्लाह को छोड़कर'... किसी भी सृजित प्राणी की पूजा के अधिकार से इनकार करने के बाद, गवाही सिर्फ अल्लाह के ईश्वर होने की पुष्टि करता है।’
क़ुरआन में अल्लाह ने कई जगहों पर उल्लेख किया है कि अल्लाह के सिवा लोग इस चीज़ की भी पूजा करते हैं, जो किसी भी पूजा के लायक नहीं हैं, और न ही उनका उस पर कोई अधिकार है, क्योंकि वे स्वयं रचना हैं और उनमे किसी तरह का कोई लाभ देने की शक्ति नहीं है।
और उन्होंने उसके अतिरिक्त अनेक पूज्य बना लिए हैं, जो किसी चीज़ की उत्पत्ति नहीं कर सकते और वे स्वयं उत्पन्न किये जाते हैं और न वे अधिकार रखते हैं अपने लिए किसी हानि का, न अधिकार रखते हैं किसी लाभ का, न अधिकार रखते हैं मरण और न जीवन और न पुनःजीवित करने का। (क़ुरआन 25:3)
इस प्रकार, ला इलाहा इल्लल्लाह का अर्थ है, "अल्लाह के अलावा कोई सच्चा ईश्वर नहीं है" या "अल्लाह के अलावा किसी भी ईश्वर की पूजा नहीं की जा सकती है।”
मुहम्मद रसूलू अल्लाह का अर्थ
वाक्यांश में प्रत्येक शब्द का अर्थ है:
मुहम्मद : पैगंबर मुहम्मद; रसूलू : दूत; अल्लाह : अल्लाह (ईश्वर)
और इसलिए इस वाक्यांश का अर्थ है, "मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं"।
इस तथ्य की गवाही देकर कोई यह पुष्टि करता है कि पैगंबर मुहम्मद वास्तव में ईश्वर द्वारा भेजे गए पैगंबर और दूत हैं, जो मानव जाति के बीच ईश्वर का संदेश देने के लिए भेजे गए हैं, जैसा कि अन्य पैगंबर और संदेशवाहक भेजे गए थे। इस तथ्य को प्रमाणित करने से अनेक अर्थ निकलते हैं। इसमे शामिल है:
1. यह विश्वास करना कि वह अंतिम पैगंबर और दूत थे।
“मुह़म्मद तुम में से किसी के पिता नहीं हैं। किन्तु, वो अल्लाह के दूत और सब पैगंबरो में अन्तिम हैं और अल्लाह प्रत्येक चीज़ो का अति ज्ञानी है।” (क़ुरआन 33:40)
2. यह विश्वास करना कि उन्होंने अल्लाह के संदेश को ईमानदारी से उसी तरह बताया जैसा उन्हें बताया गया था। अल्लाह कहते हैं:
“…आज मैंने तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए परिपूर्ण कर दिय है तथा तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म स्वरूप चुन लिया है।…” (क़ुरआन 5:3)
3. यह विश्वास करना कि वह सभी मानव जाति के लिए एक पैगंबर थे। अल्लाह कहते हैं:
“कहो: हे मानवता! मैं आप सभी के लिए अल्लाह का दूत हूं…” (क़ुरआन 7:158)
4. यह विश्वास करना कि उन्होंने धर्म के बारे में जो कुछ भी कहा वह अल्लाह की ओर से आया था। उन्हें एक उदाहरण के रूप में लिया जाना चाहिए और बिना किसी शक के उनका पालन किया जाना चाहिए क्योंकि वह अल्लाह के नाम पर बोलते थे और उनका पालन करना अल्लाह का पालन करना है।
“और वह अपनी इच्छा से नहीं बोलते, वह तो बस वह़्यी (रहस्योद्घाटन) है। जो (उनकी ओर) की जाती है। (क़ुरआन 53:3-4)
“जो दूत की आज्ञा का पालन करता है, वह अल्लाह की आज्ञा का पालन करता है...” (क़ुरआन 4:80)
5. हमें उनके द्वारा लाए गए कानून के अनुसार अल्लाह की पूजा करनी चाहिए। उन्होंने मोज़ेक कानून सहित पिछले सभी कानूनों को समाप्त कर दिया।
“और जो भी इस्लाम के सिवा किसी और धर्म को मानेगा, तो उसे कदापि स्वीकार नहीं किया जायेगा और वे परलोक में हारे हुओ में से होगा।” (क़ुरआन 3:85)
6. पैगंबर मुहम्मद को प्यार और सम्मान दिया जाना चाहिए। उनकी नैतिकता, एकेश्वरवाद फैलाने के लिए उनके बलिदान, और अपने विरोधियों के साथ धैर्य रखने के बारे में जानने से सभी लोगो का उनके प्रति सम्मान बढ़ जाता है। जितना अधिक हम उनके जीवन और विशेषताओं के बारे में जानेंगे, उतना ही हम उनके लिए अपने प्रेम में वृद्धि करेंगे।
संक्षेप में, मुहम्मद रसूलु अल्लाह की गवाही का अर्थ है पैगंबर मुहम्मद ने जो आदेश दिए उनका पालन करना, उन्होंने जो सुचना दी उस पर विश्वास करना, उन्होंने जो निषिद्ध किया उस पर विश्वास करना, और उनके निर्देशानुसार सिर्फ अल्लाह की पूजा करना। ये सभी बातें किसी खास लोगों या किसी खास समय तक सीमित नहीं हैं।
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- ज्ञान प्राप्त करने का महत्व
- स्वर्ग (2 का भाग 1)
- स्वर्ग (2 का भाग 2)
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आस्था की गवाही
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